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________________ ३६४ आचाराङ्गसूत्रे क्षयाम्मृत उच्यते, तदायुः। यद्वा-आनीयन्ते शेषप्रकृतयः उपभोगाय जीवेन यस्मिन्, तदायुः । यथा-कांस्यादिपात्रे शाल्योदनव्यञ्जनायो भोक्त्रा भोक्तुमानीयन्ते, तद्वत् । (६) नमयति-प्रापयति नारकादिसंज्ञां जीयमिति नाम । नामकर्मणविनवतिर्भेदाः भवन्ति । तत्र मूलभेदाः द्विचत्वारिंशत् । तथाहि (१) गतिनाम, (२) जातिनाम, (३) शरीरनाम, (४) अङ्गोपाङ्गनाम, (५) निर्माणनाम, (६) बन्धननाम, (७) संघातनाम, (८) संस्थाननाम, (९) संहनननाम, (१०) वर्णनाम, (११) गन्धनाम, (१२) रसनाम, (१३) स्पर्शऔर जिस के क्षय से मर जाता है, उसे आयुकर्म कहते हैं । अथवा जिस में जीव भोगने के लिए अन्य प्रकृतियों को लाता है बह आयु है, जैसे कांसे आदि के भाजन में चावल, ओदन, व्यंजन आदि वस्तुएँ भोगने वाला पुरुष लाता है, उसी प्रकार शेष प्रकृतिया आयु में भोगी जाती हैं। (६) नाम-कर्म के तेरानवे (९३) भेद-जो कर्म जीव को नारक आदि संज्ञाओं का पात्र बनाता है, वह नामकर्म कहलाता है। उसके तेरानवे भेद हैं। उन में भी मूल भेद बयालीस हैं, वे इस प्रकार-(१) गतिनाम, (२) जातिनाम, (३) शरीरनाम, (४) अङ्गोपाङ्गनाम; (५) निर्माणनाम, (६) बन्धननाम, (७) संघातनाम, (८) संस्थाननाम, (९) संहनननाम (१०) वर्णनाम, (११) गन्धनाम, (१२) रसनाम, (१३) स्पर्शनाम, (१४) आनुपूर्वांनाम, પામે છે, તેને આયુકર્મ કહે છે અથવા જેમાં જીવ અન્ય પ્રકૃતિએને ભેગવવા માટે લાવે છે તે આયુ છે. જેમ કે કાંસા આદિના વાસણમાં ચોખા, ભાત, વ્યંજન (શાક) આદિ વસ્તુઓ ભેગવવાવાળા પુરૂષ લાવે છે તે પ્રમાણે શેષ-પ્રકૃતિઓ આયુમાં ભગવાય છે. (6) नामभनार (63) मे छ. २ ४ पने ना२४ी माह सज्ञाव्यानु પાત્ર બનાવે છે, તે નામકર્મ કહેવાય છે, તેને ત્રાણુ (૯૩) ભેદ છે. તેમાં પણ મૂલ ભેદ मेंaste छे. ते मा प्रभा-(१) तिनाम,(२) तिनाम,(3) शरीरनाम,(४) Amin. नाम,(५) निर्भानाम,(६) धननाम,(७) संघातनाम,(८) संस्थाननाम,(द) सनननाम, (१०) व भान,(११)धनाम,(१२)२सनाम, (१३)२५ नाम, (१४)मानुपूर्वी नाम,(१५) શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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