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________________ ३५८ आचाराङ्गसूत्रे उत्तरप्रकृतिसंख्याज्ञानावरणीयाधष्टविधकर्मणामुत्तरमकृनिसंख्या अष्टचत्वारिंशदधिकशतं १४८ भवन्ति । तथाहि (१) ज्ञानावरणीयस्य-मति-श्रुता-ऽवधि-मनापर्यय -- केवलज्ञानावरणीयभेदात् पञ्च। . (२) दर्शनावरणीयस्य-चक्षुर्दर्शना-ऽचक्षुर्दर्शना-ऽवधिदर्शन-केवलदर्शनावरणीयानि चत्वारि, तथा-निन्द्रा-निद्रानिद्रा-प्रचला-प्रचलाप्रचला-स्त्यानद्धिभेदात् पश्च मिलित्वा नव भवन्ति । ___ (३) वेदनीयस्य शाताशातभेदेन द्वौ भेदी स्तः । उत्तरप्रकृतियोकी संख्याज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियों की संख्याएँ (मध्यमविवक्षा से) १४८ हैं । वे इस प्रकार (१) ज्ञानावरणीय की पांच-(१) मतिज्ञानावरणीय, (२) श्रतज्ञानावरणीय, (३) अवधिज्ञानावरणीय, (४) मनःपर्ययज्ञानावरणीय, (५) केवलज्ञानावरणीय । (२) दर्शनावरणीय की नौ-(१) चक्षुर्दर्शनावरणीय, (२) अचक्षुर्दर्शनाबरणीय, (३) अवधिदर्शनावरणीय, (४) केवलदर्शनावरणीय, तथा (५) निद्रा, (६) निद्रानिद्रा, (७) प्रचला, (८) प्रचला-प्रचला, (९).स्त्यानर्द्धि, ये पांच निद्राएँ मिलकर कुल नौ प्रकृतिया हैं। (३) वेदनीय की दो-सातावेदनीय और असातावेदनीय । ઉત્તરપ્રકૃતિઓની સંખ્યાજ્ઞાનાવરણીય આદિ આઠ કર્મોની ઉત્તરપ્રકૃતિઓની સંખ્યા (મધ્યમ વિવેક્ષાથી) भासान मतालीस (१४८) छ. ते ॥ प्रमाणे (१) शाना१२६यनी पांय - (१) भतिज्ञानावरणीय, (२) श्रुतज्ञानावरणीय, (3) अपधिज्ञानावरणीय, (४) मन:पर्ययज्ञाना१२०ीय, (५) सज्ञाना१२०ीय. (२) शनावरणीयनी न छ. (१) यक्षुश ना१२०ीय, (२) सयक्षुशनावराय, (3) मधिशनावरणीय, (४) तनाव२०ीय, तथा (५) निद्रा, (6)निद्रा-निद्रा (७) प्रया, (८) प्रथा-प्रयता, (4) स्त्यानद्धि, म पांय निद्राच्या मनाने पुस નવ પ્રકૃતિએ થાય છે. (3) वेनीयनी में (१) सातवहनीय अन साहनीय. શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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