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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ मु.२. मतिज्ञानम् (९) १८५ मतिज्ञानं चानेकविधम् , ईहादिभेदात् । उक्तञ्च भगवता"ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सन्ना सई मई पना, सव्वं आभिणिबोहियं" ॥ (नन्दी मनि ज्ञानगाथा २७) छाया-ईहा, अपोहः विमर्शः मार्गणा च गवेषणा । संज्ञा स्मृतिः मतिः प्रज्ञा सर्वम् आभिनिबोधिकम् ॥ 'आभिणिबोहियं' इत्यनेन त्रिकालविषयकं मतिज्ञानमुच्यते तथा-चोक्तं भगवता-"पंचविहं गाणं पण्णत्तं । तंजहा-(१) आभिणिबोहियणाणं, (२) मुयणाणं, (३) ओहिणाण (४) मणपज्जवणाणं (५) केवलणाणं । इति ( नन्दी, १) (१) ईहाईडाऽपोहादयो मतिज्ञानप्रभेदाः। तत्र-ईहनम्-ईहा। नामजात्यादियहाँ मतिज्ञान का ही प्रसङ्ग है। मतिज्ञान, ईहा आदि के भेद से अनेक प्रकार का है। भगवान्ने कहा है : " ईहा, अपोह, विमर्श, मार्गणा, संज्ञा, स्मृति, मति और प्रज्ञा, यह सब आभिनिबोषिक ज्ञान ( मतिज्ञान) है" (नन्दीसूत्र मतिज्ञान गाथा २७) आभिनिबोधिक ज्ञान का अर्थ है-त्रिकालविषयक मतिज्ञान । भगवान्ने कहा है:- "ज्ञान पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-(१) आभिनिबोधिकज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्ययज्ञान और (५) केवलज्ञान" (नन्दी-सू०१) (१) ईहाइहा अपोह आदि मतिज्ञान के भेद हैं। नाम और जाति आदि की विशेष મતિજ્ઞાનને જ પ્રસંગ છે, મતિજ્ઞાન ઈહા આદિ ભેદથી અનેક પ્રકારનું છે. ભગવાને यु छ :-81, अपाड, विभश, भा , गवेषणा, संज्ञा, स्मृति, भति, मन પ્રજ્ઞા, એ સર્વ આભિનિબંધક જ્ઞાન–મતિજ્ઞાન છે (નંદીસૂત્ર મતિજ્ઞાનગાથા ર૭) આભિનિબેધિક જ્ઞાનને અર્થ છે-ત્રિકાલવિષયક મતિજ્ઞાન, ભગવાને કહ્યું છે કે"ज्ञान पांय ४२नु छ, ते २॥ प्रमाणे (१) मानिनिमाधिज्ञान (२) श्रुतज्ञान, (3) मधिज्ञान (४) भन: यज्ञान आने वज्ञान (नन्ही सू०१) (१) होઈહા તથા અપહ વગેરે મતિજ્ઞાનના ભેદ છે. નામ અને જાતિ આદિની વિશેષ प्र. आ.-२४ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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