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________________ १४० आचारागसूत्रे जीवास्तिकायस्य (१)-अनन्तज्ञानम् , (२)-अनन्तदर्शनम् (३)-अनन्त सुखम् , (४)-अनन्तवीर्य चेति गुणाः। (१)-अव्यावाधवत्त्वम् , (२)-अनवगाहवत्त्वम् , (३)-अमूर्तिकत्वम् (४)-अगुरुलघुवत्त्वं चेति पर्यायाः। अयं द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव-गुण-भेदेन पञ्चधा ज्ञायते-(१)-द्रव्यतःअनन्ता जीवाः, (२)-क्षेत्रतो लोकप्रमाणाः, (३)-कालत आद्यन्तरहिताः, (४)भावतः अरूपिणः-वर्णगन्धरसस्पर्शवर्जिता इति, (५)-गुणतश्चेतनालक्षणा इति । । इति जीवास्तिकायः सम्पूर्णःजीवास्तिकाय के गुण ये हैं- (१) अनन्त ज्ञान (२) अनन्त दर्शन (३) अनन्त सुख और (४) अनन्त वीर्य । (१) अव्याबाधवत्व (२) अनवगाहनावत्व (३) अमूर्तिकत्व और (४) अगुरुलघुत्व, ये जीव की पर्याय हैं। द्रव्य क्षेत्र काल भाव और गुण के भेद से पांच प्रकार से जीवास्तिकाय का ज्ञान होता है। (१) द्रव्य से-जीव अनन्त हैं, (२) क्षेत्र से लोकप्रमाण हैं (३) काल से-आदि-अन्त रहित हैं (४) भाव से-अरूपी हैं-रूप, रस, गन्ध, और स्पर्श से रहित हैं (५) गुण से-चेतनालक्षण हैं । । इति जीवास्तिकाय । पास्तियन। शुष्प ॥ छ-(१) मनतज्ञान, (२) मनत ४शन (3) सनात सुम मन (४) मनत वाय. (१) मध्यामाधव (२) मनानावत्य (3) मभूति અગુરુલઘુત્વ, એ જીવની પર્યાય છે. मन (४) દ્રવ્ય, ક્ષેત્ર, કાલ, ભાવ અને ગુણના ભેદથી પાંચ પ્રકારે જીવાસ્તિકાયનું જ્ઞાન थाय छे. (१) द्रव्यथी-०१ २मन छे. (२) क्षेत्रथी- प्रमाण. (3) सथी-मा मन्त हित छ. (४) माथी-मरूपी छ-३५-२स-य अने. २५शथी २डित छ (५) गुथी-येतनासक्षY छ.। ઈતિ જીવાસ્તિકાય શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006301
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages781
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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