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अध्ययन-सार :
जीवन टूटने पर जुड़ना सम्भव नहीं। अतः प्रमाद छोड़ो। प्रमादी मनुष्य के लिये कोई शरण नहीं होती। पापों से धनोपार्जन करने वाले धन यहीं छोड़ दुर्गति में जाते हैं। जीव अपने कर्मों से दोनों लोकों में यातनायें पाता है। कर्म-फल भोग अपरिहार्य है। जीव 'अपनों' के लिये कर्म करता है, जो कर्म-फल-भोग के समय सहभागी नहीं होते। धन कभी कहीं शरण नहीं देता। अनंत मोही जीव मोक्ष-मार्ग देखकर भी नहीं देखता। आशु-प्रज्ञ साधक सोये हुओं के बीच भी जागता रहे। समय का मूल्य समझे। अप्रमत्त रहे। दोषों से बचे। शरीर का गुण-प्राप्ति के लिये ही उपयोग करे। उस के प्रति ममत्व न रखे। स्वेच्छाचारी न बने। साधना-यात्रा में प्रारम्भ से ही अप्रमत्त रहे। अन्यथा बाद में अप्रमत्त होना असम्भव होगा। विवेक तत्काल नहीं होता। अतः साधक काम-भोग-त्याग, मोक्ष-मार्ग-प्रगति व समभाव-धारण द्वारा विवेक अर्जित करे। प्रतिकूल विषयों से राग न रखे। क्रोध-मान-माया-लोभ से सुरक्षित रहे। अधर्मियों से सुरक्षित दूरी बनाये रखे। जीवन-पर्यन्त सद्गुणों के ही लिये
जीये।
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उत्तराध्ययन सूत्र