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वचन गुप्तिः
विनय
:
विवेक
वयगुत्तयाए णं णिव्विकारत्तं जणयई। -२१/५४ वचन गुप्ति से निर्विकार स्थिति प्राप्त होती है। . अणुसासिओ न कुप्पिज्जा।
-१/६ गुरुजनों के अनुशासन से कुपित-क्षुब्ध नहीं होना चाहिए। नच्चा नमइ मेहावी।
-१/४५ बुद्धिमान ज्ञान प्राप्त करके नम्र हो जाता है।
माणविजएणं अज्जवं जणयई। -२१/६८ अभिमान को जीत लेने से ऋजुता (सरल भाव) प्राप्त होती है।
विणए ठविज्ज अप्पाणं, इच्छंतो हियमप्पणो।
-१/६ अपना हित चाहने वाला साधक स्वयं को विनय में स्थिर करे।
अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा, निहाणि उ वज्जए। -१/८ अर्थयुक्त (सारभूत) बातें ही ग्रहण करें, निरर्थक बातें छोड़ दें।
विन्नाणेण समागम्म, धम्मसाहणमिच्छिउं। -२३/३१ विज्ञान (विवेक ज्ञान) से ही धर्म के साधनों का निर्णय होता है।
वेयावच्चेणं तित्थयरनामगोत्तं कम्म निबन्धइ।
-२६/४३ वैयावृत्य से आत्मा तीर्थंकर होने जैसे उत्कृष्ट पुण्य कर्म का उपार्जन करता है। संकाभीओ न गच्छेज्जा।
-२/२१ जीवन में शंकाओं से ग्रस्त-भीत होकर मत चलो।
पियंकरे पियंवाई,
से सिक्खं लडुमरिहई। प्रिय (अच्छा) कार्य करने वाला और प्रिय वचन बोलने वाला अपनी अभीष्ट शिक्षा प्राप्त करने में अवश्य सफल होता है।
सद्धा खमं णे विणइत्तु राग। -१४/२८ धर्म-श्रद्धा हमें राग (आसक्ति) से मुक्त कर सकती है।
वैयावृत्य :
शंका
शिक्षा :
शिक्षा
-११/१४
श्रद्धा
परिशिष्ट
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