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रखने वाला राजा होगा।' एक ब्राह्मण-पुत्र ने भी यह सुना। उस वृक्ष को लेकर उसके व करकण्डू के मध्य विवाद हुआ। न्यायाधीश ने कहा- राजा बनने पर ब्राह्मण-पुत्र को एक गांव दे देना। यह वचन लेकर बांस का दण्ड करकण्डू को दिया। ब्राह्मणों की शत्रुता के कारण चाण्डाल-परिवार को वह नगर छोड़ना पड़ा। यह परिवार कांचनपुर पहुंचा। कांचनपुर के निःसंतान राजा के देहावसान पर निश्चित हुआ कि पट्टहस्ति जिसे फूलमाला पहना देगा, वही राजा होगा। हाथी ने माला करकण्डू के गले में डाल दी। वह राजा बन गया । ब्राह्मण-पुत्र को पता चला तो उसने एक गांव-विशेष मांगा, जो महाराज दधिवाहन की राज्य-सीमा में था। राजा करकण्डू ने उस गांव के बदले अपने राज्य का गांव लेने का प्रस्ताव महाराजा को दिया, जिसे अपमान समझ वे युद्ध हेतु आ डटे। सूचना पाकर दोनों सेनाओं के बीच महासती पद्मावती पहुंची और पिता-पुत्र का मिलन कराया। दधिवाहन ने पुत्र को राज्य सौंपा। दीक्षा ली। सम्राट् करकण्डू ने गो-वंश की विशेष सेवा की। एक बछड़ा उन्हें बहुत प्यारा था। उस का पूरा ध्यान रखने की आज्ञा दी। मां का पूरा दूध पीकर हृष्ट-पुष्ट होते बछड़े को देख राजा के नेत्र शीतल होते। समय अभाव में करकण्डू कई वर्ष तक गोशाला नहीं आ सके। जब आये तो वह बैल बूढ़ा व अशक्त हो चुका था। यह देख वे विरक्ति से भर गये। उन्होंने दीक्षा ले ली। वे स्वयंबुद्ध बने। उन्होंने कठोर साधना से कैवल्य प्राप्त किया। वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए। (अध्ययन-18/46)
पांचाल - नरेश द्विमुख
पांचाल देश में काम्पिल्यपुर-नरेश जय वर्मा महारानी गुणमाला सहित श्री-सम्पन्न नगर के सुख भोगा करते थे। नगर-सौंदर्य में चित्रशाला के अभाव की ओर एक विदेशी दूत द्वारा संकेत किये जाने पर उन्होंने मनोरम चित्रशाला बनवाई, जिसकी नींव खोदते हुए बहुमूल्य मुकुट निकला। उसके हीरे-मोतियों की प्रभा में राजा के दो मुख दिखाई दिया करते, जिसके कारण वे राजा द्विमुख नाम से प्रसिद्ध हुए। नगर में अष्ट-दिवसीय इन्द्रध्वज महोत्सव था। उन्हें इन्द्रध्वज के सौंदर्य ने
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