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रसलोलुपता
एक राजा को आम बड़े प्रिय थे। अत्यधिक आम-सेवन से वह बीमार पड़ गया। उपचार से स्वस्थ करने वाले चिकित्सकों ने उसे आम न खाने को कहा। कुछ दिन बाद राजा व मंत्री जंगल में गये। राजा आम के पेड़ के नीचे, मंत्री के रोकने पर भी, सुस्ताने लगा। तभी एक आम राजा के निकट गिर पड़ा। सुगंध आई। प्रियतम स्वाद की कल्पना जागी। 'एक आम से कुछ नहीं बिगड़ेगा', राजा ने सोचा और खा लिया। खाते ही भयंकर उदर-शूल ने उसके प्राण ले लिये। सचमुच! रसलोलुपता दुर्लभ मानव-जीवन को खा जाती है। (अध्ययन-7/11) दुर्लभ मनूष्य-जीवन
एक सेठ ने अपने तीनों पुत्रों को समान धन दे कर विदेश भेजा। बड़ा पुत्र विषय-भोगों में सारी पूंजी गंवा कर लौट आया। मंझले ने उसके ब्याज से निर्वाह किया और पूंजी ज्यों की त्यों ले आया। छोटे ने व्यापार द्वारा उसे कई गुना बढ़ाया। सेठ ने योग्यता परख कर छोटे को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। सचमुच! कुछ लोग मानव-जीवन-रूपी मूलधन नष्ट कर देते हैं। विषयासक्ति के परिणामस्वरूप वे नरक पाते हैं। कुछ पुनः मनुष्य-भव पा कर मूलधन को ज्यों का त्यों रखते हैं और कुछ तप-त्याग-संयम से मानव-जीवन-रूपी मूलधन को देव गति में रूपान्तरित कर मोक्ष (परम लाभ) की ओर अग्रसर हो जाते हैं।
(अध्ययन-7/14) परम सार्थकता
कौशाम्बी नगरी के काश्यप नामक स्वर्गीय राजपुरोहित के पुत्र कपिल ने नये राजपुरोहित की भव्य सवारी देख अपनी मां को रोते हुए पाया तो कारण पूछा। मां ने बताया, "तेरे पिता की सवारी भी यूं ही निकला करती थी। तू पढ़ा-लिखा होता तो राजपुरोहित तू ही बनता।" कपिल ने विद्वान् बनने का संकल्प करते हुए मां के आंसू पोंछे। दरिद्रता में उसके पिता के मित्र श्रावस्ती के उपाध्याय इन्द्र दत्त ने उसकी सहायता की। कपिल श्रावस्ती जाकर सुख-सुविधाओं सहित अध्ययन
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