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उत्तराध्ययन सूत्र : कथा - कोष
विषयासक्ति का परिणाम
एक धनिक ने गाय-बछड़े और मेंढ़े, दोनों को पाला । वह मेढ़े को सुस्वादु/पौष्टिक आहार देता और बछड़े को रूखा-सूखा चारा । बछड़े ने अपनी मां से इस सौतेले व्यवहार की शिकायत की। गाय ने उसे समझाया और परिणाम की प्रतीक्षा करने को कहा। कुछ ही समय बाद धनिक के घर अतिथि आये तो खा-पीकर मोटे-ताजे हो चुके मेंढ़े को मार कर उसका मांस उन्हें परोसा गया। बछड़ा यह देख भय से कांप उठा। उसने अपनी मां से पूछा, “क्या मुझे भी यूं ही मारा जायेगा?" मां ने उत्तर दिया, "तुम ने तो रूखा-सूखा चारा खाया है। तुम नहीं मारे जाओगे।" सचमुच ! जो इन्द्रियों के सुखों या काम-भोगों में आसक्त रहता है, उसे बड़ा दुःखद परिणाम भोगना पड़ता है।
( अध्ययन- 7/1
लोभ से क्या मिला !
एक भिखारी ने परदेश में जैसे-तैसे एक हज़ार कार्षापण (मुद्रा) इकट्ठे किये। लौटते हुए उसने एक कार्षापण अलग निकाला व शेष पोटली में बांध लिये। मार्ग में उसे भुनाया। उसकी बीस काकिणियां आयीं। उन में से उसने खर्च किया। आगे जाने पर उसे ध्यान आया कि एक काकिणी वह विश्राम स्थल पर ही भूल आया। उसने पोटली वृक्ष के नीचे गढ़ा खोदकर गहरे छिपा दी। छिपाते हुए एक चोर ने उसे देख लिया। विश्राम-स्थल पर पहुंचा तो वह काकिणी नहीं मिली। लौटा तो पोटली भी गायब थी। उसने सर पीट लिया। सचमुच ! लोभ व्यक्ति से उसकी मूल पूंजी भी छीन लेता है। सांसारिक सुखों की एक काकिणी के चक्कर में वह हज़ार कार्षापणों-सा दिव्य धर्म-आनन्द खो बैठता है।
( अध्ययन- 7/11)
परिशिष्ट
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