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________________ २२६.ब्रह्मलोक (नामक देव-लोक) में (एकभवीय आयु-)‘स्थिति’ उत्कृष्टतः दस सागरोपम की, और जघन्यतः सात सागरोपम की होती है । To read २२७.लान्तक (देव-लोक) में (एकभवीय आयु-) 'स्थिति' उत्कृष्टतः चौदह सागरोपम की, तथा जघन्यतः दस सागरोपम की होती है । २२८. महाशुक्र (देव-लोक) में (एक भवीय आयु-) 'स्थिति' उत्कृष्टतः सत्रह सागरोपम की, तथा जघन्यतः चौदह सागरोपम की होती है । २२६.सहस्रार (देव-लोक) में (एकभवीय आयु-) 'स्थिति' उत्कृष्टतः अठारह सागरोपम की, तथा जघन्यतः सत्रह सागरोपम की होती है । २३०.आनत (देव-लोक) में (एकभवीय आयु-) 'स्थिति' उत्कृष्टतः उन्नीस सागरोपम की, तथा जघन्यतः अठारह सागरोपम की होती है । २३१. प्राणत (देव-लोक) में (एक भवीय आयु-) 'स्थिति' उत्कृष्टतः बीस सागरोपम की, तथा जघन्यतः उन्नीस सागरोपम की होती है । २३२.आरण (देव-लोक) में (एकभवीय आयु-) 'स्थिति' उत्कृष्टतः इक्कीस सागरोपम की, तथा जघन्यतः बीस सागरोपम की होती है । अध्ययन-३६ 35 ८३५ SED mu CHACHN
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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