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२०५. (इनमें) भवनवासी (देव) दस प्रकार के, वनचारी (व्यन्तर देव)
आठ प्रकार के, ज्योतिषी (देव) पांच प्रकार के, तथा वैमानिक (देव) दो प्रकार के होते हैं।
२०६.(दस प्रकार के) भवनवासी (देव इस प्रकार) हैं- (१) असुरकुमार
(२) नागकुमार, (३) सुपर्णकुमार, (४) विद्युत्कुमार, (५) अग्निकुमार, (६) द्वीपकुमार, (७) उदधिकुमार, (८) दिक्कुमार,
(६) वायुकुमार और (१०) स्तनितकुमार। २०७.आठ प्रकार के वानव्यन्तर इस प्रकार हैं- (१) पिशाच, (२) भूत,
(३) यक्ष, (४) राक्षस, (५) किन्नर, (६) किम्पुरुष, (७) महोरग, और (८) गन्धर्व ।
२०८.पांच प्रकार के ज्योतिषी नामक (देव इस प्रकार) हैं- (१) चन्द्र,
(२) सूर्य, (३) नक्षत्र, (४) ग्रह, और (५) तारा। ये दिशाविचारी (अर्थात् मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते हुए भ्रमणशील) हैं।
२०६.(उनमें) जो वैमानिक देव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं, (जिन्हें)
(१) कल्पोपग (कल्पोपपन्न, कल्पवासी), और (२) कल्पातीत(इन नामों से) जानना चाहिये ।
२१०. कल्पोपग (वैमानिक देव) बारह प्रकार के होते हैं- (१) सौधर्म,
(२) ईशान, (३) सनत्कुमार, (४) माहेन्द्र, (५) ब्रह्मलोक, तथा (६) लान्तक,
२११. (७) महाशुक्र, (८) सहस्रार (E) आनत, (१०) प्राणत, (११)
आरण, और (१२) अच्युत - ये (१२ प्रकार के) कल्पोपपन्न देव
अध्ययन-३६
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