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________________ 卐ED ६५. (इसके अतिरिक्त प्रत्येक शरीर वनस्पतियों में) (७) लता-बलय (नारियल, केला आदि जिनकी शाखान्तर न होकर, त्वचा ही वलयाकार हो जाती है), (८) पर्वज (ईख, बांस आदि), (६) कुहण (जमीन को फोड़ कर उगने वाली वनस्पति, जैसे कुकुरमुत्ता), (१०) जलरुह (कमल, सिंघाड़ा आदि), (११) औषधि (धान्य), (१२) तृण व हरितकाय (चौलाई व पालक आदि हरी सब्जियां),- इन्हें प्रत्येक शरीर (वनस्पति) समझना चाहिए, ऐसा (सर्वज्ञ द्वारा) कहा गया है। ६६. (एक ही शरीर में अनन्त जीवों का अधिष्ठान हो, ऐसी) वे 'साधारण शरीर' (नामक वनस्पतियां) अनेक प्रकार की कही गई हैं- आलू, मूली, श्रृंगबेर (अदरक) आदि । ६७. हिरिलीकन्द, सिरिलीकन्द, सिस्सिरिली कन्द, जावई कन्द, केद-कन्दलीकन्द, पलाण्डु कन्द (प्याज), लहसुन कन्द, कन्दली और कुस्तुम्बक, ६८. लोही (लोहनी कन्द), स्निहू- हुताक्षी कन्द, कुहक, कृष्ण, वज्रकन्द (विदारी कन्द), और सूरणकन्द (जिमीकन्द), ६६. (इसी प्रकार) अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुंडी, और हरिद्रा (हल्दी) इत्यादि अनेक प्रकार की (साधारण शरीर वनस्पतियां) होती हैं । १००. उन (वनस्पति कायों) में सूक्ष्म वनस्पति काय एक ही प्रकार के, और नानात्व (भेदों) से रहित कहे गये हैं। सूक्ष्म सारे लोक में तथा बादर लोक के देश में हैं। अध्ययन-३६ ७६३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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