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५२. (जीव) एक समय में (एक साथ अधिक से अधिक) गृहि-लिंग
से चार, अन्य लिंगों में से दस, तथा स्वलिंग में से एक सौ आठ (जीव) सिद्धि-मुक्ति प्राप्त कर (सक)ते हैं ।
५३. (जीव एक समय में, अधिक से अधिक एक साथ) उत्कृष्ट
अवगाहना में दो, जघन्य (अवगाहना) में चार, तथा मध्यम (अवगाहना) में एक सौ आठ-सिद्ध अवस्था (मुक्ति) को प्राप्त
कर (सकते हैं। ५४. एक समय में (अधिक से अधिक एक साथ) ऊर्ध्वलोक (मेरुपर्वत
की चूलिका) में चार, (लवणोदधि-व कालोदधि) समुद्र में दो, तथा (नदी-आदि) जलाशयों-में तीन, अधोलोक में बीस, तथा तिर्यक् लोक में एक सौ आठ जीव सिद्धि (मुक्ति) प्राप्त कर (सकते
५५. (ऊर्ध्वगति करते हुए) सिद्ध (जीव) कहां (जाकर) रुक जाते हैं?
कहां (पहुंच कर) सिद्ध प्रतिष्ठित-अवस्थित होते हैं?
HOROSCOPetas
५६. अलोक (लोकान्त) में सिद्ध (जीव) रुक जाते हैं, लोक के
अग्र-भाग में प्रतिष्ठित होते हैं, और यहीं (मनुष्य-लोक में) (औदारिक) शरीर को छोड़ कर (अर्थात् छोड़ते ही) वहां (लोकाग्रभाग में) पहुंच कर 'सिद्ध' (मुक्त आत्मा के रूप में अवस्थित) हो जाते हैं।
५७. 'सर्वार्थसिद्ध' (नामक विमान) के बारह योजन ऊपर, छत्र के
आकार वाली 'ईषत्प्राग्भारा' नाम की पृथ्वी अवस्थित है।
अध्ययन-३६
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