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________________ ४७. यह संक्षेप रूप में अजीव (द्रव्य) के विभाग (भेदों) का कथन किया गया है। इसके अनन्तर, (अब) जीव (द्रव्य) सम्बन्धी विभाग (भेदों) का क्रमशः कथन करूंगा । ४८. जीव के दो भेद कहे गए हैं (१) संसारी, और (२) सिद्ध | (इनमें) सिद्धों के अनेक भेद कहे गये हैं, जिन्हें मैं कह रहा हूँ, सुनो। ४६. (सिद्धों के ६ भेद इस प्रकार हैं-) (१) स्त्रीलिंग-सिद्ध, (२) पुरुषलिंग सिद्ध, (३) नपुंसक-लिंग सिद्ध, (४) स्वलिंग-सिद्ध', (५) अन्यलिंग-सिद्ध, और (६) गृहीलिंगसिद्ध । - ५०. (सिद्ध जीव) उत्कृष्ट (अर्थात् ५०० धनुष प्रमाण) अवगाहना, जघन्य (अर्थात् दो हाथ प्रमाण) अवगाहना व मध्यम अवगाहना में (अर्थात् किसी भी अवगाहना में सिद्धि-मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं, और वे) ऊर्ध्वलोक (मेरु पर्वत की चूलिका), से मोक्ष जाने वाले चारण मुनि, अधोलोक एक सहस्र गहरी भूमि में स्थित सलिलावती विजय से व तिर्यग् लोक (ढाई द्वीप) में, तथा समुद्र ( लवणोदधि व कालोदधि) व (नदी आदि अन्य) जलाशयों में (तथा पर्वत आदि स्थानों में भी, अर्थात् किसी भी क्षेत्र से) सिद्धि-मुक्ति प्राप्त कर (सक) ते हैं । ५१. एक समय में (अधिक से अधिक एक साथ) नपुंसकों में से दश, स्त्रियों में से बीस, तथा पुरुषों में से एक सौ आठ (जीव) सिद्ध अवस्था (मुक्ति) को प्राप्त कर (सक)ते हैं । 9. स्वलिंग- रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि उपकरण । अध्ययन-३६ ७७७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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