________________
६. (इसी तरह, अरूपी अजीवों में) आकाशास्तिकाय, आकाशास्तिकाय
का 'देश', तथा आकाशास्तिकाय का ‘प्रदेश' भी कहे गए हैं । (उपर्युक्त नौ अजीव, और) एक 'अद्धा- समय' (काल)- ये दश
भेद अरूपी (अजीव) के होते हैं। ७. धर्म (अस्तिकाय) और अधर्म, (अस्तिकाय) - ये (दोनों ही)
लोक-मात्र कहे गए - हैं। आकाश (अस्तिकाय) लोक-प्रमाण, तथा अलोक (-प्रमाण भी) है। 'समय' (काल) 'समयक्षेत्रिक' (अर्थात्
मात्र मनुष्य-क्षेत्र-प्रमाण, ढाई द्वीप में ही व्यवहृत) होता है। ८. (इन अजीवों में) धर्म, अधर्म, आकाश-ये तीन (काल की दृष्टि
से) अनादि, अपर्यवसित (अनन्त) तथा सर्वकालस्थायी (शाश्वत) कहे गये हैं।
६. इसी प्रकार, ‘सन्तति' (परम्परा/प्रवाह) की दृष्टि से 'समय'
(काल) को भी (अनादि, अनन्त) कहा गया है। (किन्तु) 'आदेश' (विशेष- व्यक्ति विशेष व कार्य-विशेष) की दृष्टि से सादि व सान्त भी (उसे) कहा गया है।
१०. स्कन्ध, स्कन्ध-देश व स्कन्ध-प्रदेश और परमाणु (इस तरह) रूपी
(द्रव्य) के चार भेद समझने चाहिएं ।
११. ('द्रव्य' की अपेक्षा से, स्कन्धों के) 'एकत्व' (परस्पर-मिलन) से
स्कन्ध (का निर्माण), तथा 'पृथक्त्व' (पूर्णतः वियुक्त होने से) परमाणु (की अवस्था को प्राप्त 'रूपी' द्रव्य) होता है। 'क्षेत्र' की दृष्टि से, 'लोक' के एक 'देश' से लेकर (सम्पूर्ण) 'लोक' (आकाश) में भजनीय (असंख्य विकल्पों से युक्त स्वरूपों में सम्भावनीय) होता है। इसके आगे, मैं उन (स्कन्ध व परमाणुओं) के, 'काल' की दृष्टि से, चार भेदों को कहूंगा। (इस गाथा को षट्पाद गाथा कहते
हैं। इसके छः पाद होते हैं) अध्ययन-३६
७६५