________________
भविष्य बनाता या बिगाड़ता है। यह अवसर भी उसे सद्कर्मों के उदय से मिलता है। प्रायः अनेक गतियों में भ्रमण कर चुकने के बाद मिलता है। बहुत समय के बाद मिलता है। सदैव जीव की आकांक्षा से कम समय के लिए मिलता है। इसलिए मनुष्य-जन्म को प्रभु ने दुर्लभ कहा है।
__उत्तम क्षेत्र, जाति व कुल का प्राप्त होना मनुष्य-जन्म प्राप्ति से भी दुर्लभ है। इस से भी दुर्लभ है मनुष्य-देह के सभी अंग मिलना। इस से भी दुर्लभ है पूर्ण आयु मिलना। इस से भी दुर्लभ है-ज्ञान की पात्रता मिलना। ____ उत्तरोत्तर दुर्लभता का यह क्रम जारी रहता है। मनुष्य-जन्म के साथ उपरोक्त सभी कुछ मिल भी जाये तो इन सब से दुर्लभ है-धर्म-श्रवण का अवसर। यह अवसर तब मिल पाता है, जब आलस्य, मोह, धर्म के प्रति उपेक्षा-भाव, अहंकार, वैर-भाव-युक्त क्रोध, प्रमाद, कृपणता, भय, शोक, अज्ञान, व्यस्तता व कार्याधिक्य से उपजी व्याकुलता, खेल-तमाशों में रुचि और क्रीड़ा-परायणता जैसी बाधायें जीवन में न रहें। इनमें से एक या अनेक बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति का मन विकथा में रमता है। विकथा का परिणाम हैधर्म-विमुखता। ऐसे में धर्म-कथा सुनने के अवसर का दुर्लभ होना स्वाभाविक
दुर्लभ धर्म-कथा-श्रवण के अवसर से भी दुर्लभ है धर्म में श्रद्धा का जागना। श्रद्धा जागने से भी दुर्लभ है श्रद्धा का स्थिर रहना। इस से भी दुर्लभ हैसंयम में पराक्रम या धर्म में पुरुषार्थ। यह तब संभव है जब सशक्त आस्था व विश्वास के साथ-साथ सुदृढ़ आत्म-बल हो। धैर्य हो। संकल्प-शक्ति हो। साहस हो। समर्थ देह हो। उत्साह हो। सहनशक्ति हो। ऐसे ही अन्य अनेक गुणों के साथ-साथ अनुकूल बाह्य परिस्थितियां भी हों। यह सब दुर्लभ है। इसलिये संयम में पराक्रम भी दुर्लभ है।
- चारों दुर्लभ संयोगों का एक ही समय में प्राप्त होना दुर्लभ है। यदि मोक्षप्राप्ति-प्रक्रिया के चारों परम अंग उपलब्ध हो जायें तो कोई उपलब्धि शेष नहीं रहती। चारों अंगों की दुर्लभता का दुर्लभ ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ मोक्ष-मार्ग पर अग्रसर होने की दुर्लभ प्रेरणा प्रदान करने के कारण भी प्रस्तुत अध्ययन की स्वाध्याय मंगलमय है।
00
अध्ययन-३
४६