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अध्ययन परिचय
'अनगार-मार्ग-गति' नामक इस अध्याय में इक्कीस गाथायें हैं। इस का केन्द्रीय विषय है-घर-संसार त्यागने वाले सन्त का मोक्ष-मार्ग पर वेगपूर्वक अग्रसर होना। इसीलिए इसका नाम 'अनगार-मार्ग-गति' रखा गया। अनगार का अर्थ है-गृह-रहित। अनगार वह है जो घर-संसार की निरर्थकता जाने, अनुभव करे, उस पर आस्था रखे, उस का और केवल उसी का प्रतिपादन व अनुमोदन करे तथा उसी के अनुरूप आचरण करे। तीन करण, तीन योग से घर-संसार त्याग कर अनगार होना संभव है।
घर का अर्थ मकान-मात्र नहीं है। घर का अर्थ है-परिग्रह। घर का अर्थ है-मोह। घर का अर्थ है-स्थूल-सूक्ष्म हिंसा। घर का अर्थ है-सम्बन्ध। घर का अर्थ है-ममत्व। घर का अर्थ है-सुख-भोग। घर का अर्थ है-इच्छा-तृष्णा। घर का अर्थ है-आरम्भ-समारम्भ। घर का अर्थ है-मान-प्रतिष्ठा का आकर्षण। घर का अर्थ है-सांसारिक दायित्व। घर का अर्थ है-अधिकार-भाव। घर का अर्थ है-सम्पूर्ण सांसारिकता। घर का अर्थ है-समस्त शारीरिकता। इस घर को समग्रत: त्यागने वाला अनगार है।
अनगार का अपना और विशिष्ट मार्ग होता है। सांसारिक दृष्टि से उस मार्ग को जाना नहीं जा सकता। संसार और शरीर के लिए वह मार्ग होता भी नहीं। वह मार्ग होता है-आत्मा के लिए।
अस्थायी ही सही परन्तु शरीर भी आत्मा का घर होता है। अनगार इस घर से भी ममत्व त्यागता है। शरीर के प्रति अनासक्त भाव रख कर वह उसे भी आत्मा के हित का साधन बना देता है। इस प्रकार नश्वर देह का भी वह अनश्वर कल्याण के लिए उपयोग कर लेता है। देह का सर्वश्रेष्ठ सम्भव उपयोग कर लेता है।
प्रत्येक अर्थ में घर का त्याग करने वाले अनगार की गति आत्मा के मार्ग पर तीव्र होती है। आत्मा के मार्ग पर अग्रसर तो सागार या गृहस्थ भी हो सकता है परन्तु उसकी यात्रा अपेक्षाकृत मंथर गति से होती है। अनगार की यात्रा वेगपूर्वक होती है।
इस वेग का कारण है-अनगार द्वारा की जाने वाली सम्पूर्ण साधना। साधना को वह सांगोपांग रूप में जीवन्त या साकार करता है। रत्न-त्रय का
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उत्तराध्ययन सूत्र