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________________ अध्ययन-सार : कर्म की स्थिति विधायक कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म और शुक्ल, ये छह लेश्याएँ होती हैं। इनका रंग क्रमश: काला, नीला, कुछ नीला व कुछ लाल, लाल, पीला और सफेद होता है। इनका रस क्रमश: कड़वा, तीखा, कसैला, खट-मीठा, कुछ खट्टा-कुछ कसैला और मीठा होता है। प्रथम तीन लेश्याएँ दुर्गंध व अंतिम तीन सुगंध-युक्त होती हैं। इनके स्पर्श क्रमशः कर्कश व कोमल होते हैं। इन का परिणाम दो सौ तेंतालीस प्रकार का होता है। असंयमी, हिंसक, क्षुद्र, दु:साहसी व क्रूर मनुष्य कृष्ण लेश्या वाला; ईर्ष्यालु, मिथ्यात्वी. कदाग्रही, मायावी. प्रमादी. लोलप. धर्त व स्वार्थी हिंसक नील: कपटी, मिथ्यात्वी, चोर व मत्सर कापोत; विनम्र, अचपल, सरल, दान्त व योग-उपधानवान् तेजो; मन्द-कषायी, प्रशांत-चित्त, योग-उपधानवान् व जितेन्द्रिय पद्म तथा धर्म-शुक्ल-ध्यान-संपन्न, प्रशान्त, समिति-गुप्ति-युक्त व जितेन्द्रिय वीतरागी शुक्ल लेश्या में परिणत होता है। सभी लेश्याओं की जघन्य स्थिति मुहूर्तार्ध व उत्कृष्ट स्थिति क्रमशः एक मुहूर्त अधिक तेंतीस सागर, पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागर, पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागर, पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिके दो सागर, एक मुहूर्त अधिक दस सागर तथा एक मुहूर्त अधिक तेंतीस सागर की होती है। नारकियों, मनुष्यों-तिर्यंचों तथा देवों में लेश्याओं की स्थिति भिन्न-भिन्न होती है। प्रथम तीन अशभ लेश्याओं से जीव दर्गति में तथा अंतिम तीन शभ लेश्याओं से सुगति में भी उत्पन्न होता है। प्रथम व अंतिम समय में परिणत हुई सभी लेश्याओं से कोई पर-भव में नहीं जाता। लेश्या-परिणति के अन्तर्मुहूर्त पश्चात् तथा अन्तर्मुहूंत शेष रहने पर जीव पर-भव में जाता है। भव्य जीव यह सब जान कर अप्रशस्त लेश्याओं का त्याग कर प्रशस्त लेश्याओं में स्थिर हो। 00 ७४६ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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