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३५. नील लेश्या की जघन्य स्थिति मुहूर्तार्ध की होती है, और उत्कृष्ट (स्थिति) पल्योपम के असंख्यातवें भाग (अर्थात् दो अन्तर्मुहूर्त) से युक्त दस सागरोपम की (धूमप्रभा पृथ्वी के ऊपर के प्रस्तर की अपेक्षा से) होती है, यह ज्ञातव्य है ।
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३६. कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति मुहूर्तार्ध की होती है, और (द्रव्य कापोत लेश्या की) उत्कृष्ट (स्थिति) पल्योपम के असंख्यातवें भाग (अर्थात् दो अन्तर्मुहूर्त) से युक्त तीन सागरोपम की (नरक की अपेक्षा से) होती है, यह ज्ञातव्य है ।
३७. तेजो लेश्या की जघन्य स्थिति मुहूर्तार्ध की होती है, और उत्कृष्ट (स्थिति) पल्योपम के असंख्यातवें भाग (अर्थात् दो अन्तर्मुहूर्त) से युक्त दो सागरोपम (ऐशान देवलोक की अपेक्षा से) होती है यह ज्ञातव्य है ।
३८. पदम्लेश्या की जघन्य स्थिति मुहूर्तार्ध की होती है, और उत्कृष्ट (स्थिति) एक मुहूर्त (अर्थात् दो अन्तर्मुहूर्त) अधिक दस सागरोपम की होती है-यह ज्ञातव्य है ।
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३६. शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति मुहूर्तार्ध की होती है, और उत्कृष्ट (स्थिति) एक मुहूर्त (अर्थात् अन्तर्मुहूर्त) सहित तैंतीस सागरोपम की होती है-यह ज्ञातव्य है ।
अध्ययन- ३४
लेश्याओं की स्थिति का यह वर्णन 'ओघ' (सामान्यग्राही दृष्टि) से किया गया है। यहां से चारों गतियों (की दृष्टि से उन) में होने वाली लेश्याओं की (जघन्य व उत्कृष्ट) स्थिति का कथन करूंगा ।
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