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________________ २३. ईर्ष्यालु, असहिष्णु/कदाग्रही, तपोहीन, अज्ञानी, मायावी, लज्जाहीन, (विषयों में) आसक्त, द्वेषी, शठ (धूर्त, ठग व असत्य भाषी), प्रमत्त, रसलोलुप व (विषय-सम्बन्धी) सुख का (सतत) अन्वेषक २४. (हिंसा आदि) आरम्भों से अविरत, क्षुद्रबुद्धि, दुस्साहसी एवं इन (ईर्ष्या आदि से सम्बन्धित, मानसिक, वाचिक व कायिक) व्यापारों से युक्त व्यक्ति नील लेश्या में (स्वयं को) परिणत करता है (या परिणत हो जाता है)। २५. (वाणी से) वक्र-कुटिल, (कर्म से भी) कुटिल-आचारयुक्त, (मन से भी) छली- कपटी, कुटिल-हृदय, अपने दोषों को ढंकने वाला, मायाचारी (या परिग्रही), मिथ्यादृष्टि, अनार्य २६. पीड़ाकारी (मर्मभेदी, तथा जो मुंह में आए ऐसे) व द्वेषादियुक्त वचन को बोलने वाला, चोर, मात्सर्ययुक्त दूसरों की उन्नति व सम्पत्ति को न सहने वाला, डाह करने वाला तथा इन पूर्वोक्त अप्रशस्त योगों (व्यापारों) से युक्त, (व्यक्ति) कापोत लेश्या में (स्वयं को) परिणत करता है (या स्वयं परिणत हो जाता है)। २७. विनम्र (अहंकार-रहित) व्यवहार वाला, चपलता से रहित, माया से रहित, कौतूहल (हंसी-मजाक, कौतुक, खेल-तमाशे आदि को देखने की उत्कण्ठा व प्रदर्शन की भावना) से रहित, विनय-निपुण, दान्त (इन्द्रिय-जयी), (स्वाध्याय आदि प्रशस्त) योगों (व्यापारों) से सम्पन्न, उपधान (श्रुत-आराधना के समय की जाने वाली तपश्चर्या) से युक्त२८. धर्म-प्रेमी, (अंगीकृत व्रत आदि) धर्मों में दृढ़, पाप से डरने वाला, 'हित' (मुक्ति) का (या सब के हित का) इच्छुक, तथा इन (पूर्वोक्त प्रशस्त) योगों (व्यापारों) से युक्त (व्यक्ति) तेजो लेश्या में (स्वयं को) परिणत करता है (या परिणत हो जाता है)। अध्ययन-३४ ७३३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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