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________________ १२. जिस प्रकार, कच्चे आम का रस तथा (कच्चे) तुवर (फल विशेष) व (कच्चे) कपित्थ (कैथ फल) का रस (कसैला) होता है, कापोत लेश्या के 'रस' को उससे भी अनन्तगुना (अधिक) कसैला जानना चाहिए। १३. जिस प्रकार, पके आम का रस, अथवा पके कपित्थ (कैथ फल) का रस (कुछ खट्टा कुछ मीठा) होता है, तेजो लेश्या के 'रस' को उससे भी अनन्तगुना (अधिक खट्टा-मीठा) जानना चाहिए । १४. श्रेष्ठ (कही जाने वाली) मदिरा का रस, या विविध प्रकार के आसवों का रस, अथवा मधु (मद्य-विशेष) व मैरेयक (मद्य-विशेष-सिरके) के रस जैसा (खट्टा-कसैला व मीठा) होता है, पद्मलेश्या का 'रस' उससे भी (अनन्तगुना खट्टा-कसैला व मीठा) अधिक होता है। १५. खजूर व दाक्षा (दाख, किशमिश) का रस, क्षीर-रस (दुग्ध) या खांड व शक्कर का रस (जैसा मधुर) होता है, शुक्ल लेश्या के रस को उससे भी अनन्तगुना (अधिक मधुर) जानना चाहिए। HODELHOTRESS १६. गाय, कुत्ते व सर्प के मृत शरीर (शव) की जैसी (दूषित) गन्ध होती है, (कृष्ण, नील व कापोत-इन तीन) अप्रशस्त लेश्याओं की गन्ध उनसे भी अनन्तगुना (अधिक दूषित) होती है। १७. जिस प्रकार, सुगन्धित फूलों की, और पीसे जा रहे (चन्दन, केसर आदि) सुगन्धित द्रव्यों की (मनोहारिणी) सुगन्ध होती है, (तेजो, पद्म व शुक्ल-इन) तीनों प्रशस्त लेश्याओं की (गन्ध) उनसे भी अनन्तगुना (अधिक सुगन्धित व मनोहारिणी) होती अध्ययन-३४ ७२६
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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