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६. कापोत लेश्या का वर्ण अलसी के फूल के समान, कोयल के पंख (अथवा 'तैलकण्टम' नामक वनस्पति जैसा, तथा कबूतर की ग्रीवा (गर्दन) के समान (कुछ काला तथा कुछ लाल) होता है ।
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७. तेजोलेश्या का वर्ण हिंगुल धातु (व गेरू आदि) के समान, तरुण (उदीयमान सूर्य) के समान तथा तोते की नासिका व (प्रज्वलित) दीप (की लौ) के समान लाल होता है ।
८.
पद्म लेश्या का वर्ण हरिताल तथा हल्दी के खण्ड जैसा तथा सण (पटसन के पुष्प) व असन (बीजक वृक्ष) के पुष्प के समान पीत होता है ।
६. शुक्ल लेश्या का वर्ण शंख, अंक (रत्न) व कुन्द (मुचकुन्द के फूल) के समान, दुग्ध की धारा जैसी कान्ति लिए हुए, एवं चांदी के हार (अथवा चांदी व मुक्ता-हार) के समान (श्वेत व उज्ज्वल) होता है ।
१०. जिस प्रकार कडुवी तुम्बी का रस, नीम का रस, तथा कड़वी ‘रोहिणी’ (नीमगिलोय औषधि विशेष) का रस (जितना कडुवा होता है, कृष्ण लेश्या के रस को उससे भी अनन्तगुना (अधिक) कडुवा जानना चाहिए ।
११. जिस प्रकार, त्रिकटुक (सोंठ, पीपल व काली मिर्च) का रस, अथवा गजपीपल का रस तीक्ष्ण (तीखा) होता है, नील लेश्या के 'रस' को उससे भी अनन्तगुना (अधिक) तीक्ष्ण जानना चाहिए ।
अध्ययन-३४
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