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Morad
३१. “आज (भले ही) मुझे (भिक्षा) नहीं मिली, कल (तो) सम्भवतः मिल ही जाएगी” -इस प्रकार जो (मुनि) चिन्तन/विचारणा करता है, उसे 'अलाभ' कष्टकारक नहीं होता ।
३२. (रोगादि-जनित) वेदना से दुःख-ग्रस्त (साधु) दुःख को (कर्मोदय आदि से) उत्पन्न हुआ जानकर, अदीन भाव से प्रज्ञा को स्थिर करे और रोगग्रस्त होने की स्थिति में (वेदना को) समभाव से सहन करे ।
३३. आत्म-गवेषक (मुनि) चिकित्सा का अभिनन्दन / समर्थन न करे, (अपितु) समाधिपूर्वक रहे । उसकी साधुता यही है कि (चिकित्सा) न तो करे और न कराए।
३४. अचेलक व रुक्ष (वृत्ति वाले) संयमी तपस्वी (मुनि) को घास-फूस पर सोते समय शरीर-विराधना (पीड़ा) होती है ।
३५. आतप (गर्मी) पड़ने पर अतुल (तीव्र) वेदना होती है-ऐसा जान कर (भी) तृण-स्पर्श से पीड़ित मुनि तन्तु-जन्य (वस्त्र) का सेवन नहीं करता ।
३६.
गर्मी में मैल, धूल से शरीर के 'क्लान्त' (पसीने से गीला) हो जाने पर मेधावी (मुनि) साता (सुख) के लिए परिदेवना (खिन्नता) न करे |
अध्ययन २
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