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अध्ययन-सार :
अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, पांच समितियों, तीन गुप्तियों, कषाय व इन्द्रिय-विजय से विपरीत आचरण द्वारा अर्जित पाप-कर्म क्षय करने की प्रक्रिया अपने जीवन को आस्रव-मुक्त व तप-युक्त बनाना है। तप के दो भेद हैं- बाह्य और आभ्यन्तर। दोनों के छह-छह भेद हैं। अनशन, ऊनोदरी, भिक्षाचर्या, रस-परित्याग, काय-क्लेश व संलीनता बाह्य और प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान व व्युत्सर्ग आभ्यन्तर तप के भेद हैं। अनशन के इत्वरिक व मरणकाल, ये दो प्रकार हैं। इत्वरिक तप के छह और मरणकाल अनशन के दो भेद होते हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की अपेक्षा से ऊनोदरी के पांच रूप हैं। प्रायश्चित्त और वैयावृत्य के दस-दस प्रकार हैं। स्वाध्याय पांच प्रकार का होता है।
इन तपों का सम्यक् आचरण करने वाला मुनि शीघ्र ही संसार से मुक्त हो जाता है।
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उत्तराध्ययन सूत्र