SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 642
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्ययन परिचय सैंतीस गाथाओं से निर्मित हुआ है, प्रस्तुत अध्ययन। इसका केन्द्रीय विषय है-तप की राह पर पराक्रमपूर्ण यात्रा। इस यात्रा में जिन साधनाओं की शक्ति से गति आती है, उनका निर्देश प्रस्तुत अध्ययन में किया गया है। इसीलिये इसका नाम 'तपोमार्ग-गति' रखा गया। तप शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। यद्यपि इस से शरीर-शुद्धि भी होती है परन्तु इसका लक्ष्य है-आत्म-शुद्धि। अग्नि सोने से खोट निकालती है। तप आत्मा से कर्मों को अलग करता है। कर्म निर्जरा ही तप का उद्देश्य है। कर्मों से मुक्त अवस्था आत्मा का स्वभाव है। शेष सभी कुछ आत्मा का परभाव है। विकार है। तप से विकार दूर होते हैं। आत्मा स्वभाव में स्थित होने का अत्यन्त दुर्लभ अवसर पाती है। परन्तु तभी जब तप सम्यक् हो। यश, आकांक्षा, प्रदर्शन, निदान, कपट आदि की विकृतियां उसमें न हों। शारीरिक और सांसारिक प्रयोजनों से वह न किया गया हो। मनुष्य अंतर्जगत् में भी जीता है और बहिर्जगत् में भी। दोनों की गतिविधियां एक-दूसरे से प्रभावित होती हैं। किसी व्यक्ति का सम्पूर्ण सत्य दोनों से मिलकर बनता है। तप-साधना भी सम्पूर्ण तभी होती है जब अंतर्जगत् में भी वह सम्पन्न हो और बहिर्जगत् में भी। इसीलिए तप-साधना के दो रूप बतलाये गये हैं-बाह्य तप साधना और आभ्यन्तर तप-साधना। जिस प्रकार अन्तर्जगत् और बहिर्जगत् एक ही व्यक्ति के होते हैं, उसी प्रकार बाह्य और आभ्यन्तर तप एक ही साधना के दो रूप हैं। यह विभाजन या वर्गीकरण साधना को सांगोपांग रूप से स्पष्ट करने व समझने के प्रयोजन से किया गया है। बाह्य या आभ्यन्तर, दोनों तप मूलतः परस्पर संबद्ध हैं। एक-दूसरे को, दोनों, सार्थकता देते हैं। एक दूसरे से, दोनों, सार्थकता पाते हैं। बाह्य तप का प्रथम रूप-अनशन सम्भवतः सर्वाधिक प्रचलित तप-साधना है। इतनी कि बहुत-से इसी को तप का पर्याय मानते हैं। तप के इस भेद का अर्थ आहार-त्याग-मात्र भी समझ लिया गया है। वस्तुत: आहार-त्याग के माध्यम से आहार के प्रति आसक्ति का त्याग अनशन है। भूख और तप में अन्तर है। भूख विवशता है और तप चुनाव। भूख अतृप्ति है और तप आत्मिक तृप्ति। तप में शरीर तपाया जाता है। मक्खन-भरा बरतन तपाया जाये तो उद्देश्य बरतन तपाना नहीं, मक्खन से छाछ को अलग करना होता है। बरतन का तपना साधन है। तप में शरीर तपना भी साधन है। साध्य है-आत्मा ६१२ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy