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पहुंच कर, साकार-उपयोग से युक्त (ज्ञान-धारा के साथ ही) सिद्ध, बुद्ध, मुक्त व निर्वाण-प्राप्त होता है और समस्त दुःखों
का अन्त (विनाश) करता है। (सू.७५) 'सम्यक्त्व-पराक्रम' (नामक) अध्ययन के इस (पूर्वोक्त) अर्थ
(कथ्य विषय) को श्रमण भगवान् महावीर ने ही प्रतिपादित (विशेषतः) प्रज्ञापित, स्वरूपादि-कथन के साथ प्ररूपित, (दृष्टान्तादि द्वारा) निदर्शित तथा (उपसंहार के साथ) उपदर्शित किया है। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-२६
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