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________________ (सू.५५) (प्रश्न-) भन्ते! 'वचन-गुप्ति' (शुभ-अशुभ-दोनों प्रकार की वाणी का संयमन करने) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'वचन-गुप्ति' से (जीव) निर्विकारता (विकथा आदि विकारों से मुक्ति) या निर्विचारता (विचार-शून्यता) को प्राप्त करता है। निर्विकार/निर्विचार जीव सर्वथा वाणी-गुप्त होने के साथ-साथ अध्यात्मयोग के (साधनभूत-धर्म व शुक्ल) ध्यान से (सम्पन्न हो जाने के कारण, कषायादि विकारों से) 'गुप्त' (सुरक्षित) हो जाता है। (सू.५६) (प्रश्न-) भन्ते! 'काय-गुप्ति' (शुभ-अशुभ समस्त कायिक व्यापारों के निरोध) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) काय-गुप्ति से (जीव) संवर (पाप-कर्मों के आस्रव का निरोध, वस्तुतः पाप-पुण्य दोनों के आस्रव का निरोध हो जाय- ऐसी स्थिति) प्राप्त करता है। 'संवर' से काय-गुप्त होता हुआ (जीव) पुनः (सम्भावित) पापास्रव का (तथा पुण्यास्रव का भी) निरोध (करने की सामर्थ्य प्राप्त) करता है। (सू.५७) (प्रश्न-) भन्ते! 'मन की समाधारणा' (संकल्प-विकल्पों को छोड़कर आगमोक्त भावों के चिन्तन-मनन में व स्वाध्याय आदि कार्यों में मन को लगाये रखने या मन को समाधिस्थ करने) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता (उत्तर-) 'मन की समाधारणा' से (जीव) 'एकाग्रता' (धर्मानुष्ठान के प्रति चित्त की अनन्य निष्ठा, विषय-रति छोड़कर, मात्र आत्मरति या शुद्धात्म विषयक ध्यानात्मक मनःप्रवृत्ति वाली अवस्था) को प्राप्त करता है। एकाग्रता को प्राप्त कर (वह) 'ज्ञान-पर्यवों' (सम्यग्ज्ञान के तात्विक ज्ञान-सम्बन्धी विशिष्ट प्रकारों व क्षमताओं) को प्राप्त करता है। 'ज्ञान-पर्यवों' को अध्ययन-२६ ५६३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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