SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 597
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (सू.१४) (प्रश्न-) भन्ते! प्रत्याख्यान (भावी दोषों की सम्भावना से बचने के लिए मन, वचन, काय से त्याग, नियम, व्रत आदि की स्वीकृति) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'प्रत्याख्यान' से (जीव कर्मबन्ध के हेतु राग आदि) आस्रव-द्वारों को निरुद्ध करता है (अर्थात् इच्छाओं का निरोध कर, सर्वत्र वितृष्णा भाव रखता हुआ रागादि की उत्पत्ति पर अंकुश लगाता है।) (सू.१५) (प्रश्न-) भन्ते! 'स्तव-स्तुति' (भक्ति व बहुमान-पूर्वक आराध्य के अरिहन्त/सिद्ध के गुणों के कीर्तन) रूप (भाव-) मंगल से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता (उत्तर-) 'स्तव-स्तुति' (रूप भाव-मंगल) से (जीव) ज्ञान-दर्शन-चारित्र स्वरूप 'बोधि' (जिनेन्द्र-प्ररूपित धर्मतत्व-बोध) का लाभ प्राप्त करता है। ज्ञान-दर्शन-चारित्र स्वरूप 'बोधि' के लाभ से सम्पन्न वह जीव 'अन्तक्रिया' (मुक्ति को प्राप्त कराने वाली) या 'कल्प' (वैमानिक देवों के) विमानों में उत्पत्ति कराने वाली 'आराधना' 'का आराधक होता है। (सू.१६) (प्रश्न-) भन्ते! 'काल-प्रतिलेखना' (स्वाध्याय आदि धर्म-क्रिया के लिए शास्त्रोक्त उपयुक्त/ अनुपयुक्त समय के सम्बन्ध में ध्यान या सावधानी रखने) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) काल की प्रतिलेखना से (जीव) ज्ञानावरणीय कर्म को क्षीण करता है। (सू.१७) (प्रश्न-) भन्ते! 'प्रायश्चित्त' (विहित पापों की आलोचना आदि द्वारा अन्तःकरण की शुद्धि की क्रिया) करने से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) प्रायश्चित्त करने से (जीव) पाप-कर्मों की विशुद्धि (निवृत्ति) करता है, तथा अतिचार (दोषों) से रहित (व्रतादि साधना अध्ययन-२६ ५६७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy