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________________ EO ३०. दर्शन (सम्यक्त्व) से रहित को (सम्यक्) ज्ञान नहीं होता। (सम्यक्) ज्ञान के बिना चारित्र रूप गुण नहीं होते। (चारित्र-)गुणों से रहित को 'मोक्ष' (पूर्ण कर्मक्षय) नहीं होता और मोक्ष के बिना ‘निर्वाण' नहीं होता। ३१. १. निःशंकता (जिन प्रवचन में शंका न रखना), २. निष्कांक्षता (सांसारिक सुखों व मिथ्यामतों के प्रति अनिच्छा), ३. निर्विचिकित्सा (धर्म फल में सन्देह न करना, तथा मुनियों के मलिन वस्त्र युक्त शरीर से घृणा न करना एवं देव-गुरु आदि की निन्दा न करना), ४. अमूढ़-दृष्टि (देव, गुरु व शास्त्र से सम्बद्ध मोहपूर्ण/ अज्ञानमय दृष्टि न रखना), ५. उपबृंहा (अपने सद्गुणों की वृद्धि करना, तथा अन्य गुणी जनों की प्रशंसा करके, उनके गुणों को बढ़ावा देना), ६. स्थिरीकरण (सम्यक्त्व व चारित्र से विचलित होने वालों को धर्म में स्थिर करना), ७. वात्सल्य (स्वधर्मी के प्रति हार्दिक निःस्वार्थ प्रेम करना एवं श्रावक व साधु-वर्ग की यथोचित सेवा करना), ८. प्रभावना (निज आत्मा की आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए तथा धर्म व संघ के कल्याण व उन्नति के लिए प्रयास करना व प्रचार करना), ये आठ (सम्यक्त्व के अंग) हैं। ३२. (चारित्र पांच प्रकार का है- पहला) सामायिक चारित्र, (दूसरा) छेदोपस्थापनीय चारित्र, (तीसरा) परिहार-विशुद्धि चारित्र तथा (चौथा) सूक्ष्मसाम्पराय चारित्र, और ३३. (पांचवां) पूर्णतः कषायों से रहित 'यथाख्यात' चारित्र है, जो छद्मस्थ व जिन (केवली. इन दोनों) को होता है। ये (कर्मों के) संचय को रिक्त करने वाले होने के कारण ‘चारित्र' (नाम से) कहे जाते हैं। अध्ययन-२८ ५४५
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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