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________________ पEO दूसरा अध्ययन परीषह- प्रविभक्ति (सूत्र-१) आयुष्मन् ! मैंने सुना है, उन भगवान् ने इस प्रकार कहा है- इस (श्रमण-चर्या) में बाईस परीषह होते हैं, जिनका काश्यप (गोत्रीय) श्रमण भगवान् महावीर ने (साक्षात्कार कर) निरूपण किया है, जिन्हें सुनकर, जानकर, (अभ्यासादि से) जिनका परिचय/अनुभव प्राप्त कर, तथा जिन्हें (सहनशक्ति से) जीतकर, भिक्षा-चर्या हेतु परिव्रजन करता हुआ भिक्षु (परीषहों से) स्पृष्ट/ग्रस्त/आक्रान्त होने पर विहत/अभिभूत/ पराजित/विचलित नहीं होता। (सूत्र-२) वे बाईस परीषह कौन-कौन से हैं (जिनका) काश्यप (गोत्रीय) श्रमण भगवान् महावीर ने (साक्षात्कार कर) निरूपण किया है, जिन्हें भिक्षु सुन कर, जानकर, (अभ्यासादि से) जिनका परिचय/अनुभव प्राप्त कर, तथा जिन्हें (सहनशक्ति से) जीतकर, भिक्षा-चर्या हेतु परिव्रजन करता हुआ (परीषहों से) स्पृष्ट/ग्रस्त/आक्रान्त होने पर विहत/अभिभूत/पराजित/विचलित नहीं होता? (सूत्र-३) वे बाईस परीषह ये हैं (जिनका) काश्यप (गोत्रीय) श्रमण भगवान् महावीर ने (साक्षात्कार कर) निरूपण किया है, जिन्हें सुन कर जानकर, (अभ्यासादि से) जिनका परिचय/अनुभव प्राप्त कर, तथा जिन्हें (सहनशक्ति से) जीतकर, भिक्षा-चर्या अध्ययन २ २७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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