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अध्ययन-सार:
स्थविर गार्ग्य मुनि संयम, ज्ञान व आचार्यत्व के गुणों से सम्पन्न थे। गाड़ी में जुता गुण-सम्पन्न बैल संसार-वन से सहज ही पार हो जाता है। दुष्ट बैल जुता हो तो गाड़ीवान उसे मारता व दुखी होता है। क्षुब्ध हो वह तरह-तरह से उसे सन्मार्ग-गामी बनाने की चेष्टा में असफल होता है। दुष्ट बैल उसे तरह-तरह से कष्ट दिया करता है। वह वाहन तोड़ देता है। अविनीत शिष्य भी धर्म-यान को खण्डित कर देते हैं। वे कषाय-ग्रस्त और ढीठ होते हैं। गुरु-वचनों में दोष देखते हैं। गुरु-आज्ञा का उल्लंघन करते हैं। कार्य करने के अवसर पर बहाने बनाते हैं। स्वेच्छाचारी हो जाते हैं।
ऐसे मूर्ख और निकम्मे अविनीत शिष्यों से खिन्न होकर गार्याचार्य ने उन्हें छोड़ दिया। सम्यक् चारित्र से सम्पन्न गााचार्य एकाकी ही विचरण करने लगे।
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उत्तराध्ययन सूत्र