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________________ अध्ययन-सार : संसार-सागर से अनेक निर्ग्रन्थों को पार कराने वाली सामाचारी के दस अंग हैं-आवश्यकी, नैषेधिकी, आपृच्छना, प्रतिपृच्छना, छन्दना, इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, अभ्युत्थान एवं उपसम्पदा। विचक्षण भिक्षु दिन के प्रथम प्रहर में प्रतिलेखना कर गुरु आज्ञा के अनुरूप सेवा या स्वाध्याय करे। मास, पक्ष व पौरुषी के नियम जाने। रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय में ध्यान, तृतीय में निद्रा व चतुर्थ में स्वाध्याय करे। रात्रि में नक्षत्र-गति व स्थिति से समय जाने। दिन-चर्या प्रतिलेखना व गुरु-वन्दना से प्रारम्भ करे। प्रतिलेखना के दोषों से बच कर नियत विधि से प्रतिलेखना करे। ध्यान केन्द्रित कर अप्रमत्त भाव से प्रतिलेखना करे। षट्कायिक जीवों का रक्षक बने। सात में से एक कारण से दिन के तृतीय प्रहर में भिक्षा हेतु जाये और छह में से एक कारण के उपस्थित होने पर न जाये। चतुर्थ प्रहर में प्रतिलेखना पूर्वक पात्र रखे और स्वाध्याय करे। फिर गुरु-वन्दन कर कायोत्सर्ग व शैया-प्रतिलेखना करे। प्रस्रवण- उच्चार-भूमि-प्रतिलेखना करे। फिर कायोत्सर्ग में दिन के अतिचार सोचे। गुरु-वन्दना कर उनकी आलोचना करे। प्रतिक्रमण करे। गुरु-वन्दन व कायोत्सर्ग करे। पुन: गुरु-वन्दन व सिद्धों की वन्दना करे। काल-प्रतिलेखना करे। रात को स्वाध्याय, ध्यान, शयन व स्वाध्याय करे। रात के अंतिम भाग में गुरु-वन्दना, काल-प्रतिक्रमण व काल-प्रतिलेखना करे। कायोत्सर्ग में रात के अतिचार सोचे। गुरु-वन्दना कर उनकी आलोचना करे। प्रतिक्रमण, गुरु-वन्दन व कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में आगामी दिवस के तप का संकल्प-चिन्तन करे। गुरु-वन्दन कर तप स्वीकार करे और सिद्धों की स्तुति करे। यही सामाचारी का संक्षिप्त रूप है, जिसके पालन से अनेक जीव मुक्त हुए। 00 ५१८ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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