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________________ ५०. प्रतिक्रमण करने के बाद (माया आदि) शल्यों से रहित होकर गुरु की वन्दना करे, और फिर समस्त दुःखों से मुक्ति दिला सकने वाला 'कायोत्सर्ग' करे । ५१. (कायोत्सर्ग में चिन्तन करे कि) “मैं आज कौन-सा तप स्वीकार करूं?" कायोत्सर्ग को पूरा करने के बाद गुरु की वन्दना करे । ५२. कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर गुरु-वन्दना करके (कायोत्सर्ग के समय चिन्तित/संकल्पित यथोचित) तप को (प्रत्याख्यान रूप में गुरुदेव से) स्वीकार कर, सिद्धों की ('नमोत्थुणं' आदि से) स्तुति करे। ५३. संक्षेप में (साधु-जीवनचर्या से सम्बद्ध) यह ‘सामाचारी' कही गई है, जिसका आचरण कर, बहुत-से जीव संसार-सागर को पार कर गए (पार कर रहे हैं और भविष्य में भी पार करेंगे)। -ऐसा मैं कहता हूँ। 00 अध्ययन-२६ ५१७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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