________________
११. विचक्षण (बुद्धिमान) साधु दिन के चार भाग करे। फिर, दिन
के (उन) चारों भागों में (स्वाध्याय आदि) उत्तरगुणों की आराधना करनी चाहिए।
१२. (दिन के) प्रथम प्रहर में (साधु इसके प्रथम १/४ भागः
प्रतिलेखना काल को छोड़कर) स्वाध्याय (करे) तथा द्वितीय प्रहर में ध्यान करे, तृतीय प्रहर में भिक्षाचर्या (आहार-ग्रहण) तथा चौथे प्रहर (के प्रारम्भिक ३/४ भाग) में फिर स्वाध्याय (तथा
शेष १/४ भाग में प्रतिलेखना) करे । १३. आषाढ़ मास में दो पादों की (अर्थात् २४ अंगुल प्रमाण वाली)
'पौरुषी', पौष मास में चार पादों की (४८ अंगुल प्रमाण वाली) तथा चैत्र व आश्विन मास में तीन पादों की (अर्थात् ३६ अंगुल
प्रमाण वाली) 'पौरुषी' हुआ करती है। १४. (पौरुषी के प्रमाण में) सात रात्रियों (अर्थात् एक सप्ताह) में
एक-एक अंगुल की, पक्ष (१५ दिन) में २-२ अंगुलों की तथा एक मास में चार-चार अंगुलों की (श्रावण से पौष मास तक, क्रमशः) वृद्धि तथा (माघ से आषाढ़ तक) हानि होती रहती है।
१. पौरुषी' का अर्थ है- सूर्य के प्रकाश में अंग की छाया से, या २४ अंगुल प्रमाण किसी शंकु
(छड़ी आदि) की छाया से नापा जाने वाला 'काल प्रमाण' । यदि कोई व्यक्ति अपना दाहिना हाथ सूर्य-मण्डल के समक्ष कर, खड़ा हो और घुटने के मध्य तर्जनी रखे , तब पैर की एड़ी से लेकर तर्जनी अंगुली वाले स्थान तक की छाया 'पौरुषी' कही जाएगी। प्रत्येक मास में इसका प्रमाण १३ से १६ तक की गाथाओं में बताया गया है। आषाढ पूर्णिमा को सूर्योदय से एक प्रहर बीतने पर इस छाया का प्रमाण २४ अंगुल या दो पाद होगा, फिर बढ़ते हुए श्रावण-पूर्णिमा को २ पाद ४ अंगुल, भाद्रपद-पूर्णिमा को २ पाद ८ अंगुल, आश्विन मास की पूर्णिमा को तीन पाद, कार्तिक पूर्णिमा को ३ पाद ४ अंगुल, मार्गशीर्ष पूर्णिमा को ३ पाद ८ अंगुल, फाल्गुन-पूर्णिमा को ३ पाद ४ अंगुल, चैत्र -पूर्णिमा को ३ पाद, वैशाख पूर्णिमा को २ पाद र अंगुल, ज्येष्ट पूर्णिमा को २ पाद ४ अंगुल, आषाढ़ पूर्णिमा को दो पाद रह जाएगा। मुनि निर्दिष्ट मास के अनुसार पौरुषी के प्रमाण से यह जान सकता है कि प्रथम प्रहर हुआ कि नहीं।
अध्ययन-२६
५०१