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________________ EXEYO Dubey अध्ययन परिचय प्रस्तुत अध्ययन में पैंतालीस गाथायें हैं। इस का केन्द्रीय विषय हैधर्म के नाम पर मिथ्याचार का अनावरण और धर्म के सच्चे स्वरूप का प्रकाशन। यज्ञ के माध्यम से यह विषय साकार हुआ है। इसीलिये इस अध्ययन का नाम 'यज्ञीय' रखा गया। भगवान् महावीर के युग में धार्मिक परिदृश्य का केन्द्र था-यज्ञ। ब्राह्मण संस्कृति में कर्म-काण्ड का प्रमुख रूप भी यज्ञ ही था । स्थूल व सूक्ष्म हिंसा से परिपूर्ण यज्ञ के माध्यम से विभिन्न कामनाओं की सन्तुष्टि के लिये विभिन्न देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती थी। यज्ञ को मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ कर्म तथा यज्ञ-कर्त्ताओं को सर्वश्रेष्ठ मनुष्य माना जाता था। इस अध्ययन के दो प्रमुख पात्र वाराणसीवासी काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण जयघोष तथा विजयघोष यज्ञ-कर्त्ता सहोदर थे। वेदों के सुप्रसिद्ध विद्वान् थे। एक दिन गंगा तट पर स्नानार्थ गये जयघोष ने देखा-एक मच्छर को मेंढक ने, उस मेंढक को सर्प ने तथा उस सर्प को कुरर पक्षी ने अपने मुँह में दबोच लिया है। काल सबके पीछे है। अपने काल को भूल कर सभी दूसरे का काल बन रहे हैं। यह दृश्य देख जयघोष का हृदय करुणा एवम् विरक्ति से भर गया। चिन्तन गतिशील हो उठा। सघन होती जिज्ञासायें उन्हें गंगा-पार ले गईं। वहाँ मुनियों से समाधान पाकर उन्होंने श्रमण-दीक्षा अंगीकार कर ली। संयम व तपसाधना से उनका जीवन परिपूर्ण हो गया। मासखमण तप करते हुए विचरते-विचरते वे वाराणसी पधारे। मासखमण तप के पारणे हेतु विजयघोष द्वारा आयोजित विशाल यज्ञ-मण्डप में पहुँचे। तप से कृश-देह मुनि जयघोष को विजयघोष ने नहीं पहचाना। भिक्षा देने से मना करते हुए कहा कि यह भोजन निज-पर- उद्धार में समर्थ ब्राह्मणों के लिये है। इस अज्ञान को देख द्रवित हुए मुनि जयघोष ने वहाँ ज्ञान-वितरित करने की कृपा की। सच्चे यज्ञ का स्वरूप बताते हुए निज-पर- उद्धार का वास्तविक मार्ग दिखाया। सत्य मार्ग पहचान कर विजयघोष भी उस पर अग्रसर हुए। श्रमण-दीक्षा अंगीकार कर उन्होंने भी मुनि जयघोष की भाँति आत्म-कल्याण किया। दोनों सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गये। दो महान् आत्माओं की यह मुक्ति-गाथा अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। भगवान् महावीर के युग में प्रचलित अज्ञान, हिंसा व अधर्म को पहचानने के लिये सम्यक् दृष्टि यह प्रदान करती है। इसकी विशेषता है कि व्यक्ति और युग, दोनों के मिथ्याचार को सम्यक् आचार में एक साथ रूपान्तरित करने की ४७४ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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