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________________ १७. (इनमें से स्थण्डिल-भूमि) १. अनापात-असंलोक (ही होनी चाहिए,) तथा वह २. पर-उपघात (दूसरे प्राणियों के घात) से रहित ३. सम ४. अशुषिर (पोली या घास व पत्तों से ढकी आदि न हो) और ५. कुछ समय पहले (अचिरकाल) की अचित्त न हो अर्थात् काफी समय पूर्व अचित्त हो । १८. (इसके अतिरिक्त वह स्थण्डिल भूमि) ६. विस्तीर्ण-(कम से कम एक हाथ लम्बी-चौड़ी) ७. दूर अवगाढ़ (अर्थात् नीचे चार अंगुल गहराई तक अचित्त हो), ८. अनासन्न (गाँव उद्यान आदि से दूर) हो, ६. विवर्जित-बिलों से रहित तथा १० द्वीन्द्रिय आदि त्रस-प्राणियों तथा शालि आदि बीजों से रहित भी हो, वहां (उक्त १० विशेषताओं से युक्त भूमि में ही) उच्चार (मल) आदि का विसर्जन करे। १६. पांच समितियों का संक्षेप में वर्णन किया गया है। अब यहां से (आगे) तीन गुप्तियों का क्रमशः वर्णन करूंगा। २०. १. सत्या (सत्य पदार्थ के सम्बन्ध में विचारणा) २. मृषा (असत्य पदार्थ के सम्बन्ध में विचारणा) ३. सत्या-मृषा (सत् व असत् दोनों मिले-जुले पदार्थों से सम्बन्धित विचारणा) तथा ४. असत्या मृषा (न सत्य और न झूठ ऐसे पदार्थों से सम्बन्धित विचारणा इस प्रकार) मनोगुप्ति चार प्रकार की है। २१. मनो - गुप्ति के पालन में अपेक्षित है -यति (मुनि) इन तीनों में प्रवृत्त हो रहे मन को यतनापूर्वक निवृत्त (दूर) करे । १. संरम्भ (मानसिक हिंसा आदि हेतू मानसिक योजना, संकल्प; इच्छा आदि), २. समारम्भ (मानसिक पर-पीड़ा कारक ध्यान क्रिया में उद्यत होना) तथा ३. आरम्भ (मानसिक परघातकारक अशुभ परिणाम से युक्त होना) । अध्ययन-२४ ४६७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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