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१६. वहां, बहुत-से कौतूहल-प्रेमी, अज्ञानी अन्य-मतावलम्बी (परिव्राजक
आदि) तथा हजारों गृहस्थ (श्रावक भी) पहुंच गए।
२०. वहां देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर तथा (अन्य)
अदृश्य देवों का समागम हो गया।
२१.केशी श्रमण, गौतम स्वामी से बोले-“हे महाभाग! आपसे मैं (कुछ)
पूछना चाहता हूँ। तब, केशीकुमार के (ऐसा) कहने पर गौतम स्वामी इस प्रकार बोले
२२. “भन्ते! जैसी इच्छा हो, पूछे'-(ऐसा) गौतम स्वामी ने केशीकुमार
से कहा। तदनन्तर अनुज्ञा प्राप्त कर, केशीकुमार ने गौतम स्वामी से इस प्रकार कहा
२३. “यह जो चातुर्याम धर्म है, जिसकी देशना महामुनि पार्श्वनाथ
द्वारा हुई है, और जो यह 'पंचयाम' धर्म है, वह (महामुनि) वर्द्धमान द्वारा उपदिष्ट है।"
२४. एक (ही लक्ष्य रूप) कार्य में प्रवृत्त होने वालों में विद्यमान वेश
व चर्या) के (इस) भेद में (आखिर) कारण क्या है? हे मेधाविन्! (इन) दो प्रकार के धर्मों के विषय में आपको सन्देह कैसे
(उत्पन्न) नहीं होता?" २५. तब, (इस प्रकार) कहने पर केशीकुमार को गोतम स्वामी ने यह
कहा-"तात्विक निर्णय से युक्त धर्म के तत्व (यथार्थ स्वरूप) की समीक्षा (तो) 'प्रज्ञा' द्वारा ही (सम्भव) होती है।"
अध्ययन-२३
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