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________________ TOTAL १३. “(वर्द्धमान महावीर द्वारा निरूपित) जो (यह) धर्म 'अचेलक’ (अवस्त्र या अल्पमूल्य के और अल्प परिमाण वाले श्वेतवस्त्र रखने की व्यवस्था वाला) है, और यह (पार्श्वनाथ-परम्परा का धर्म) 'सान्तरोत्तर' (यानी सान्तर विशिष्ट वर्ण वाले, या बहुमूल्य वस्त्रों के रखने की व्यवस्था वाला) है। एक (ही मोक्ष-रूप) कार्य में (हम (दोनों) प्रवृत्त हैं, (फिर भी) इनमें विशेषता (भेद) का (आखिर) कारण क्या है?" १४. तब, केशी और गौतम उन दोनों ने (अपने) शिष्यों के ‘वितर्क' (जिज्ञासा- पूर्ण विचार) को जानकर, वहां (श्रावस्ती में, परस्पर) मिलने का विचार किया । १५. गौतम स्वामी 'प्रतिरूप' (औचित्यपूर्ण व्यवहार) के ज्ञाता थे । (केशी कुमार के) कुल को ज्येष्ठ मानते हुए, (अपने) शिष्य-समुदाय सहित (वे स्वयं) तिन्दुक वन में पधारे। १६. केशीकुमार श्रमण ने (भी) गौतम स्वामी को आया देख कर (उनकी) अच्छी तरह, 'प्रतिरूप प्रतिपत्ति' (यथोचित व्यवहार-संगत आदर-सत्कार की क्रिया) की । १७. (उन्होंने) वहां तुरन्त ही गौतम स्वामी को बैठने के लिए प्रासुक (जीव-रहित, निर्दोष) पलाल (शाली, ब्रीहि, कोद्रव, कांगणी) इन चार प्रकार के अनाजों के (पलाल/घास) तथा पांचवीं 'कुश' (नामक) घास (डाभ) को प्रस्तुत किया । १८. केशीकुमार श्रमण तथा महायशस्वी गौतम स्वामी- दोनों बैठे हुए (उस समय) चन्द्र व सूर्य की तरह शोभायमान हो, विराज रहे थे । अध्ययन- २३ ४३३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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