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६. लोक में दीपक के समान (अज्ञान-अन्धकार को दूर करने वाले)
उन (भगवान वर्द्धमान महावीर) के भगवान् (चार ज्ञानों के धारी) तथा विद्या (ज्ञान) व चारित्र के पारगामी 'गौतम' (इन्द्रभूति)
नामक महायशस्वी शिष्य थे। ७. द्वादशांग (श्रुत) के ज्ञाता व प्रबुद्ध वे (गौतम स्वामी) भी (अपने)
शिष्य-संघ के साथ, ग्रामानुग्राम (एक गांव से दूसरे गांव में) विचरण करते हुए, 'श्रावस्ती' (नगरी) में पधारे ।
८. उस नगर की सीमा में (ही अर्थात् समीप में) 'कोष्ठक' (या
क्रोष्टुक) नामक (एक) उद्यान था। (वे) प्रासुक (निर्दोष) संस्तारक (आसन) व शय्या वाले (उद्यान) में (आए, और) ठहर गये। (महायशस्वी) केशीकुमार श्रमण तथा महायशस्वी गौतम स्वामी-दोनों ही वहां आत्मलीन व सम्यक् समाधि-युक्त (होकर) विचरण करने लगे।
१०. वहां, संयम-परायण, तपस्वी, गुणवान् तथा त्रायी (षट्काय जीवों
के रक्षक उन) दोनों के शिष्य-संघों में (यह) चिन्तन (विचार) उत्पन्न हुआ।
११. “यह (हमारा) 'धर्म' कैसा है, और (उनका) यह धर्म कैसा है?
आचार-धर्म की व्यवस्था (समाचारी) यह (हमारी) कैसी है, और (उनकी) वह (समाचारी) कैसी है?"
१२. “यह 'चातुर्याम' (चार महाव्रतों वाला) धर्म है जिसकी देशना
महामुनि पार्श्वनाथ ने की है, और (यह) पंचशिक्षात्मक (पांच महाव्रतों वाला) धर्म है जिसकी देशना (महामुनि) वर्द्धमान स्वामी
ने की है।" अध्ययन-२३
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