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________________ अध्ययन-सार : शौर्यपुर के ऋद्धि सम्पन्न नरेश वसुदेव के रोहिणी से बलराम और देवकी से श्रीकृष्ण नामक दो पुत्र थे। वहीं दूसरे सम्राट् समुद्रविजय व रानी शिवा देवी को भगवान् अरिष्टनेमि के माता-पिता होने का गौरव मिला। भगवान् अत्यंत शुभ शरीर, बुद्धि व आत्मा से सम्पन्न थे। श्रीकृष्ण ने उनके लिये सर्वशुभलक्षण-सम्पन्न राजकुमारी राजीमती से विवाह-संबंध स्थिर किया। विवाह हेतु जाते हुए अरिष्टनेमि ने बाड़े में बंद भयग्रस्त पशु-पक्षी देखे। सारथी से पूछने पर जाना कि इन्हें मांस-भोजियों को खिलाने के लिये पकड़ा गया है। उनके हृदय में वैराग्य जन्मा। अभिनिष्क्रमण कर लोंच करते हुए उन्होंने दीक्षा ली। यह सुन राजीमती ने भी दीक्षा ली। रैवतक पर्वत जाते हुए वर्षा से भीग कर वे गुफा में गईं। गीले वस्त्र फैलाते हुए रथनेमि ने उन्हें यथाजात रूप में देखा। भोग भोगने का निमंत्रण दिया। कहा कि संयमाचरण बाद में कर लेंगे। राजीमती ने अपनी देह आवृत्त कर उन्हें धिक्कारते हुए अंगधन कल के सर्प की भांति वमित विष या त्यागी हई विषय-वासना को पुनः न पीने या अपनाने की प्रेरणा दी। कहा कि 'वह सर्प अग्नि में जल मरना वमित-विष पीने से श्रेयस्कर मानता है। तू संयम में स्थिर हो कुल की मर्यादा का पालन कर। यदि नहीं करेगा तो श्रामण्य-भाव का स्वामी श्रमण होते हए भी नहीं बन सकेगा। कषायों व इन्द्रियों का दास मत बन। आत्मा को संयम में स्थिर कर।' यह सुन रथनेमि अंकुश से मद-रहित हाथी के समान कषाय-रहितसाधक हो गया। जितेन्द्रिय हो कर जीवन-भर शुद्ध संयम साधना की। साधना से राजीमती व रथनेमि. दोनों सर्व कर्म क्षय कर अनत्तर गति (मोक्ष) को प्राप्त हुए। भगवान् महावीर ने कहा कि सम्यक् सम्बुद्ध तथा विचक्षण पुरुष रथनेमि के समान भोग-निवृत्त हो जाते हैं। ४२४ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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