SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्ययन परिचय इस अध्ययन का केन्द्रीय विषय है-असंयम पर संयम की विजय। इसमें इक्यावन गाथायें हैं। रथनेमि नामक व्यक्तित्व के माध्यम से यह विषय साकार हुआ है। इसीलिए इसका नाम 'रथनेमीय' रखा गया। रथनेमि जैन धर्म के बाइसवें तीर्थंकर भगवान् अरिष्टनेमि के सहोदर भ्राता थे। शौर्यपुर के यदुवंशी राजा समुद्रविजय उनके पिता तथा महारानी शिवादेवी उनकी माता थीं। श्री कृष्ण उनके चचेरे भाई थे। श्रीकृष्ण ने अत्यंत क्षमता-संपन्न किन्तु विरक्त अरिष्टनेमि के मौन को स्वीकृति मान कर उनका विवाह-सम्बन्ध भोजकुल के राजा उग्रसेन की अनिंद्य सुन्दर पुत्री राजीमती से स्थिर किया। बारात में रथारूढ़ अरिष्टनेमि ने मार्ग-स्थित बाड़ों में बन्दी पशु-पक्षियों की भयाकुल चीख-पुकार सुनी। जाना कि माँस-भोजियों के आहार हेतु उन्हें मारा जायेगा। इससे उद्वेलित होकर उन्होंने पश-पक्षियों को बंधन व भय-मक्त कराया और वापिस लौट चले। ये पशु-पक्षी उस युग में सामाजिक स्तर पर प्रतिष्ठित हिंसा के प्रतीक हैं। प्रभु द्वारा इन्हें मुक्त कराना वस्तुतः इस हिंसा को अपदस्थ कर इसके स्थान पर अहिंसा को प्रतिष्ठित करने का सूचक है। सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ दान-अभय-दान की महिमा इससे मंडित होती है। माँसाहार असंयम है और सभी को जीने का अधिकार देना संयम है। प्रस्तुत अध्ययन के पूर्व भाग में असंयम की त्याज्यता और संयम की वांछनीयता पर अरिष्टनेमि-प्रसंग के माध्यम से बल दिया गया है। उत्तर भाग अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत है, जिसके केन्द्र में दो चरित्र हैं-रथनेमि और राजीमती। दोनों असंयम व संयम के बीच तनाव, द्वन्द्व तथा असंयम पर संयम की विजय को रूपायित करते हैं। अरिष्टनेमि के विवाह-मार्ग से ही लौट जाने का समाचार पाकर राजीमती ने शोक, मूर्छा, रथनेमि के विवाह-प्रस्ताव की अस्वीकृति आदि स्थितियों से गुजरते हुए प्रभु-पथ का अनुसरण करने का दृढ़ निश्चय किया। प्रभु द्वारा कैवल्य प्राप्ति करने पर उन्होंने दीक्षा ली। उधर अपने विवाह-प्रस्ताव की अस्वीकृति से विरक्त होकर रथनेमि पहले ही प्रव्रजित हो चुके थे। रैवतक पर्वत पर समवसृत भगवान् के दर्शन-वन्दन हेतु जाते हुए महासती राजीमती तेज़ बारिश में भीगी और एक गुफा में चली गईं। वहां अंधकार था। एकान्त जान उन्होंने अपने वस्त्र सूखने को फैला दिये। वहां ध्यानस्थ मुनि रथनेमि ने तड़ित्-कौंध के प्रकाश में ४०६ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy