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२३. श्रुत-ज्ञान के द्वारा प्राप्त धार्मिक क्रिया-सम्बन्धी ज्ञान से युक्त
(अथवा अनेक प्रशस्त ज्ञानों से युक्त) महर्षि, अनुत्तर (लोकोत्तर व सर्वोत्कृष्ट) धर्म-समूह का आचरण कर. यशस्वी व अनत्तर (लोकोत्तर-सर्वोत्कृष्ट 'केवल') ज्ञान का धारक होता हुआ, अन्तरिक्ष
में सूर्य की भांति, (धर्म-संघ में) प्रकाशमान हुआ करता है। २४. (उक्त यथार्थ मुनि-चर्या के द्वारा) समुद्रपाल (मुनि) पुण्य व पाप
दोनों को क्षीण कर, संयम के प्रति निश्चल (शैलेशी अवस्था को प्राप्त या कर्म-संग से रहित) तथा सर्वतोभावेन (सांसारिक बन्धनों से) विमुक्त होकर समुद्र के समान महान् संसार-प्रवाह को तैर कर, पुनरागमन-रहित (मोक्ष) स्थिति को प्राप्त हो गए। -ऐसा मैं कहता हूँ।
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अध्ययन-२१
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