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बीसवां अध्ययन : महानिर्गन्धीय
१. सिद्धों और संयमियों को भावपूर्वक नमस्कार कर (मोक्ष-रूप)
अर्थ एवं (उसके साधनभूत रत्नत्रय) धर्म का ज्ञान कराने वाली तथ्य (से पूर्ण) अनुशिष्टि अनुशासना (शिक्षा) को मुझसे सुनो।
२. प्रभूत रत्नों से सम्पन्न मगध अधिपति राजा श्रेणिक विहार यात्रा
(उद्यान क्रीड़ा) के लिए 'मण्डिकुक्षि' नामक चैत्य (उद्यान) में नगर से निकल कर पहुंचा।
३. विविध प्रकार के वृक्षों व लताओं से आकीर्ण नाना प्रकार के
पक्षियों द्वारा सुसेवित (आश्रित) तथा नाना प्रकार के पुष्पों से अच्छी तरह आच्छादित (वह) उद्यान नन्दन वन जैसा था।
४. वहां उस (राजा श्रेणिक) ने (एक) संयत सम्यक् समाधि-सम्पन्न
एवं सुख (भोगने के योग्य (युवा अवस्था वाले) सुकुमार साधु को वृक्ष के नीचे देखा।
५. उस (साधु) के रूप को देखकर राजा को उस संयमी के प्रति
अत्यधिक उत्कृष्ट एवं अनुपम रूप (सम्बन्धी) आश्चर्य हुआ ।
अध्ययन-२०
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