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________________ TOTHO ८०. “(आप बताएं-उस रोगी मृग को) कौन औषधि देता है, कौन उससे सुख-साता पूछा करता है, और कौन उसको खाने-पीने के लिए लाकर देता है?" ८१. “वह (मृग स्वतः) जब स्वस्थ हो जाता है, तब भक्त-पान (भोजन-पानी) के लिए चरागाहों (गोचरों) लता-निकुंजों एवं तालाबों में चला जाता है । " ८२. “लता-निकुंजों व तालाबों में खाकर तथा पानी पीकर मृगचर्या (स्वतन्त्र व उछलकूद पूर्वक विचरण या परिमित आहार-पानी का ग्रहण) करते हुए मृगचारिका (मृगों की निवास-भूमि) को चला जाता है । " ८३. “इसी प्रकार संयम में उद्यमशील साधु उस (मृग) की तरह अनेक स्थानों में (स्वतन्त्र) विचरण करता हुआ और मृगचर्या (स्वतन्त्र विचरण) (या मितचर्या अर्थात् परिमित आहारादि का ग्रहण) का आचरण कर ऊर्ध्व दिशा (मोक्ष) को प्रस्थान करता है । " ८४. “जिस प्रकार, मृग एकाकी (ही) अनेक स्थानों में विचरण करने वाला, अनेक स्थानों में निवास करने वाला तथा गोचरी (द्वारा प्राप्त आहार) पर ही 'ध्रुव' (आश्रित) रहने वाला होता है, उसी प्रकार मुनि (भी अनेक स्थानों में भ्रमण करते हुए अनेक अनियत स्थानों में निवास तथा भिक्षा आदि का ग्रहण करते हुए तथा गोचरी हेतु (किसी घर में) प्रविष्ट होकर न तो किसी की अवहेलना या अपमान करता है और न ही (किसी की) निन्दा | 29 ८५. “(अतः मैं भी) मृगचर्या का आचरण करूंगा।” (तब माता-पिता ने मृगापुत्र को कहा-) “हे पुत्र! ऐसी बात है तो जैसे तुम्हें सुख हो (वैसा ही करो)” इस प्रकार माता-पिता की अनुज्ञा लेकर फिर (मृगापुत्र) ने 'उपधि' (अन्तरंग व बाह्य परिग्रह) का त्याग कर दिया । अध्ययन- १६ ३५६ DIODICAT
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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