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________________ अध्ययन परिचय प्रस्तुत अध्ययन का केन्द्रीय विषय है-जिनेन्द्र-प्रवर्तित जीवन की सर्वोत्तम जीवन के रूप में स्थापना। यह स्थापना राजा से मुनि हुए संजय के माध्यम से हई है। संजय या संयत से सम्बन्धित होने के कारण इस अध्ययन का नाम 'संजयीय' रखा गया। इसमें चौवन गाथायें हैं। इस अध्ययन में वर्णित धर्म-कथा एक माँसाहारी शिकारी के अहिंसक अनगार में रूपान्तरित हो जाने की कथा है। तपोधान अनगार गर्दभालि द्वारा राजा संजय को सदुपदेश देना कथा का प्रारम्भिक भाग है। राजा संजय का हिंसक व भोग-प्रधान जीवन छोड़ कर अहिंसक व अकिंचन मुनि बन जाना कथा का मध्य भाग और संजय राजर्षि व क्षत्रिय राजर्षि के मध्य हुई महत्त्वपूर्ण ज्ञान-वार्ता कथा का अन्तिम भाग है। हिंसा भय से और भय के लिये की जाती है। अहिंसा अभय से और अभय के लिये होती है। भय देने वाला भय और अभय देने वाला अभय पाता है। आत्मा का स्वभाव अभय है। भय विकृति है। जिनेन्द्र प्रवर्तित जीवन के स्वभावानुरूप जीने का नाम है। इसके लिये यह पहचानना आवश्यक है कि जिन अपनों के लिये आत्मा स्वभाव के विपरीत कर्म करने में जुटी रहती है, वे कर्मफल भोग में साथ नहीं देते। मृत्यु से नहीं बचाते। कांटा चुभने तक की वेदना नहीं बँटा सकते। सांसारिक जड़-चेतन पदार्थों को अपना मानना भ्रम है। आत्मा की संसार-यात्रा में हितकारी सच्चा साथ देता है तो केवल धर्म। राजा संजय व मुनिवर गर्दभालि के सम्बन्धों के रूप में यहाँ धर्म साकार हुआ है। राजा ने मुनि के मृगों का शिकार किया। इसलिये मुनि कुपित हो तप-तेज से भस्म तक कर सकते हैं। इस सोच से भयाक्रांत राजा ने क्षमा मांगी। मुनि ने राजा की भयाक्रांत मनोदशा को ही धर्म-कथा का आधार बनाया। धर्म-कथा सुन राजा ने अपनी मनोदशा से मृगों की मनोदशा जानी। सांसारिकता की नश्वरता जानी। सत्य अनुभव किया। शरीर के लिये जीना छोड़ कर आत्मा के लिये जीना प्रारम्भ किया। मुनि धर्म अंगीकार किया। वे राजा थे। फिर महाराज या राजर्षि हो गये। मन पर, इन्द्रियों पर उनका साम्राज्य स्थापित होने लगा। वे कमल-से खिलने लगे। आत्म-शास्ता बन विचरण करने लगे। फिर उनके तथा क्षत्रिय राजर्षि के बीच वार्ता हुई। वह ज्ञान-वार्ता थी। जय-पराजय-निर्धारक शास्त्रार्थ नहीं था। इसलिये ३०८ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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