________________
(आचार्य का कथन )
सूत्र - ३. उन स्थविर भगवन्तों ने जो ब्रह्मचर्य-सम्बन्धी दश (प्रकार के) समाधि-स्थान कहे हैं, वे ये (ही) हैं, जिन्हें सुनकर तथा (अर्थ-निश्चय के साथ) हृदयंगम कर, भिक्षु (उत्तरोत्तर) संयम की बहुलता तथा संवर व समाधि की अधिकाधिकता से सम्पन्न होते हुए, स्वयं (के मन, वचन व शरीर) को तथा इन्द्रियों को 'गुप्त' (संयमित, नियन्त्रित, वशीभूत) रखे, तथा ब्रह्मचर्य को (नौ प्रकार की गुप्तियों के द्वारा) सुरक्षित रखते हुए सदा प्रमाद-हीन होकर विचरण करे ।
वे इस प्रकार हैं:
सूत्र -४
EMILLA
स्थान विवेकः (प्रथम समाधि-स्थान-) (जो) विविक्त (स्त्री' - पशु-नपुंसक आदि के संसर्ग से रहित) शयनासन (शैया, बिछौना व उपाश्रय आदि) का सेवन करता है, वह 'निर्ग्रन्थ' है, (अर्थात् जो) स्त्री', पशु व नपुंसक (व्यक्तियों के संसर्ग) से युक्त / सेवित शयन व आसन का सेवन नहीं करता है, वह 'निर्ग्रन्थ' है ।
ऐसा क्यों? (शिष्य जिज्ञासा)
( उक्त प्रश्न के उत्तर में) आचार्य ने कहा- स्त्री', पशु व नपुंसक के संसर्ग से युक्त शयन व आसन का सेवन करने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के 'ब्रह्मचर्य' के विषय में, (स्वयं को तथा दूसरों को) शंका हो (सकती है, या फिर कांक्षा (भोगादि की इच्छा) या विचिकित्सा (ब्रह्मचर्य-धर्म से होने वाले महान् फल के विषय में सन्देह की मनःस्थिति) उत्पन्न हो (सक)ती है, या फिर (ब्रह्मचर्य का) नाश (भी) हो (सक)ता है, अथवा (काम-सम्बन्धी) उन्माद (रोग) को (भी) प्राप्त कर (सक) ता है, या दीर्घकालिक (राजयक्ष्मा आदि) रोग व आतंक (उदरशूल, मस्तक-पीड़ा जैसा शीघ्र प्राणहारी रोग भी)
१. साध्वी के लिए 'पुरुष आदि के संसर्ग से रहित' ।
अध्ययन-१६
२७५