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________________ अध्ययन परिचय सोलह गाथाओं से निर्मित हुआ है-प्रस्तुत अध्ययन। इस का केन्द्रीय विषय है-सच्चे भिक्षु की विशेषतायें। प्रत्येक विशेषता बतलाने के बाद प्रत्येक गाथा के अन्त में कहा गया है-“स भिक्खू" अर्थात् वह भिक्षु है। इसीलिए इस अध्ययन का नाम 'सभिक्षुक' रखा गया। ___पेट भरने के लिए मुनि-वेश धारण करने वाला भिक्षु नहीं होता। पूजा-सम्मान की लालसा से या आलस्य से या धोखा देने के प्रयोजन से मुनि-वेश धारण करने वाला भी भिक्षु नहीं होता। ऐसे भिक्षु को शास्त्र में 'द्रव्य-भिक्षु' कहा गया है। बतलाया गया कि वास्तविक भिक्षु तो भाव-भिक्षु' ही होता है। जिनेन्द्र-प्ररूपित धर्म का तीन करण, तीन योग से आचरण व्यक्ति को भाव-भिक्षु या सच्चा भिक्षु बनाता है। नाम से ही स्पष्ट है कि ऐसा भिक्षु अपरिग्रही होता है। अकिंचन होता है। अकिंचन वह नहीं होता जो दयनीय हो। अकिंचन वह होता है जो अहंकार से मुक्त हो। अहंकार से मुक्त वह होता है, जिसने यश, धन और विषय-भोगों की इच्छाओं को जीत लिया हो। इच्छा-जेता वह होता है जो इच्छाओं का खोखलापन समझ चुका हो, जो शरीर की सीमाओं को जान चुका हो। ये सीमायें वह जानता है, जिसने संसार की नश्वरता को अनुभव किया हो। सांसारिक सुखों के भ्रम को पहचान लिया हो। यह पहचान उसे होती है, जिसका चिन्तन विस्तृत हो। अंतर्नेत्र खुले हों। अन्तर्नेत्र खुलने का अर्थ है-ममत्व और आसक्ति के रंग-बिरंगे चश्मे हटा कर सब कुछ देख पाने की क्षमता। जो इस क्षमता से सम्पन्न हो, वह दयनीय नहीं हो सकता। भिक्षु इस क्षमता से सम्पन्न होता है। वह इच्छाओं की दासता में जकड़े बेबसों पर दया कर सकता है। करता है। वह संसार में रहता है। संसार उसमें नहीं रहता। इसलिए संसार उसे न आकर्षित कर पाता है, न बांध पाता है। सांसारिक दृष्टि से भिक्षु वह है, जिसे अभावों ने भीख मांगने पर विवश कर दिया हो। ऐसे व्यक्ति को जैन धर्म 'भिक्षु' नहीं मानता। 'भिक्षु' जैन धर्म का पारिभाषिक शब्द है। इस का अर्थ है-ऐसा व्यक्ति, जिसके लिए सांसारिकता निरर्थक हो चुकी हो। शारीरिक सुख-भोग निरर्थक हो चुके हों। अपने-पराये के संकीर्ण भेदों से जिसका भाव-जगत् मुक्त हो चुका हो। सम-भाव और २५६ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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