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________________ अध्ययन-सार : इषुकार नगर में एक ही देव-विमान-वासी छह देव दो पुरोहित-पुत्रों, उनकी पत्नी यशा, राजा इषुकार व रानी कमलावती के रूप में उत्पन्न हुए। मुनि-दर्शन से दोनों पुरोहित-पुत्र विरक्त हो गये। उन्हें पूर्व-जन्मों की स्मृति हो आई। अनासक्त मुमुक्षु होकर वे अपने पिता से बोले-'मनुष्य-जन्म अनित्य है। मुनि-धर्म पालन की अनुमति दें।' पुरोहित ने उन्हें रोकते हुए कहा-'पुत्रहीन को सद्गति नहीं मिलती। वेद-अध्ययन, विप्रों को भोजन-दान, विवाह व भोग-प्राप्ति करने के बाद पत्रों को गृह-दायित्व दे मुनि बनना। सभी दिव्य भोग तम्हें यहीं प्राप्त हैं। तब प्रव्रज्या क्यों लेनी? शरीर के साथ आत्मा भी नष्ट हो जाती है। तुम घर में रहते हुए सम्यक्त्व व व्रत-पालन कर बुढ़ापे में श्रमण बन जाना।' पुत्र बोले-'वेदाध्ययन आदि रक्षक नहीं होते। काम-भोग क्षणिक सुख व दीर्घ दु:ख-दायी हैं। कामासक्त अतृप्त अवस्था में मृत्यु पाता है। मृत्यु के रहते प्रमाद असम्भव है। धर्म-धुरा-धारी को काम-भोगों से कोई प्रयोजन नहीं। आत्मा इन्द्रिय-गम्य नहीं। अमूर्त व नित्य है। राग-द्वेष से होने वाला बन्ध संसार का हेतु है। धर्म जानकर हम पाप नहीं करेंगे। अमोघ काल-चक्र के रहते गृह-सुख असम्भव है। लोक पीड़ा से घिरा है। व्यतीत रात्रियां लौट कर नहीं आतीं। वे धर्म करने से ही सफल होती हैं। मृत्यु से बच सकने वाला ही कल की प्रतीक्षा कर सकता है। भोग पूर्वजन्मों में हम अनेक बार भोग चुके। अब मुक्तिदायी मुनि-पथ पर आज ही बढ़ेगे।' यह सुन पुरोहित ने अपनी पत्नी से पुत्र-रहित स्थिति की असहायता और भिक्षाचर्या वरण करने की बात कही। पुरोहित पत्नी ने भोगों के पक्ष में तर्क दिये परन्तु पुरोहित ने उसे समझाया। तब पुरोहित-पत्नी ने भी पुत्रों का अनुगमन करने का निश्चय किया। उस परिवार की विपुल धन-संपत्ति की इच्छा रखने वाले राजा इषुकार को रानी कमलावती ने किसी का वमन न खाने का सुझाव दिया। धन व काम-भोग नहीं, धर्म ही रक्षक है, यह समझाया। अपने मुनि-धर्म-वरण करने की सूचना दी। भोगों को अनित्य, आकुलता का कारण बंधनों का हेतु कहा। इस से राजा भी प्रतिबुद्ध हुए। राजा-रानी ने भी संयम-पराक्रम-पथ अपनाया। अल्प समय में उक्त छहों व्यक्ति मुक्त हो गये। 00 २५४ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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