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________________ 635 ने नहीं की। दोनों आयुष्य पूर्ण कर सौधर्म देवलोक में जन्मे। वहां से च्यव कर छठे भव में दोनों अलग-अलग स्थानों पर उत्पन्न हुए। निदान के फलस्वरूप सम्भूत का जीव ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती और चित्र का जीव शुद्ध संयम धारी चित्त मुनि बना। एक नाटक देखते हुए ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को पूर्वजन्मों की स्मृति हो आई। पांच जन्मों तक साथ रहे भाई की याद ने उन्हें सताया। उन्होंने आधा श्लोक रचा-"आस्व दासौ, मृगौ, हंसौ, मातंगावमरौ तथा" अर्थात् हम दोनों पूर्वजन्मों में एक साथ क्रमश: दासी-पुत्र, मृग, हंस, चाण्डाल-पुत्र एवं देव-रूप में रहे हैं। इस श्लोक को पूरा करने वाले को आधा राज्य देने की घोषणा कर दी। चित्त मुनि ने इसे पूरा करते हुए कहा-“एषा नो षष्टिका जातिः, अन्योन्याभ्यां वियुक्तयोः" अर्थात् हम एक-दूसरे से बिछुड़ गये हैं, और यह हमारा छठा जन्म है। दोनों मिले। दोनों के बीच परस्पर कुशल-क्षेम की जिज्ञासा के साथ-साथ सुख-दुःख रूप कर्म-विपाक से सम्बन्धित तत्व-चर्चा हुई। दोनों ने एक-दूसरे को सुख देने के लिए प्रयास किए। दोनों की दृष्टियां अलग-अलग थीं। दोनों के लिए सुख का अर्थ भी एक नहीं था। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के अनुसार राजकीय सुख-भोग ही सुख था। चित्त मुनि के अनुसार वह अन्ततः दु:ख तक पहुंचाने वाला सुख का भ्रम था। अपने-अपने अर्थ के अनुरूप दोनों ने दोनों की दिशा बदलने व सुख देने के प्रयास किये परन्तु कोई सफल न हुआ। अन्त में ब्रह्मदत्त ने मुनिराज की बात को वैचारिक स्तर पर सही मानते हुए भी काम-भोगासक्ति छोड़ने में असमर्थता व्यक्त की। चारित्र-मोहनीय कर्म के प्रगाढ़ बन्धन का परिणाम यह हुआ कि चक्रवर्ती आर्य-धर्म तक स्वीकार न कर पाये और अशुभतम सातवीं नरक में गये। निर्मल संयम के परिणामस्वरूप चित्त मुनि ने शुभतम मोक्ष गति प्राप्त की। स्पष्ट हुआ कि भोगासक्ति से जीवात्मा कहां और अनासक्ति व निर्मल संयम से कहां पहुंचता है। दो व्यक्तित्वों के माध्यम से जीवन की दो दिशाओं, दो विचारधाराओं या दो दृष्टियों का कारणों-परिणामों सहित ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ जीवात्मा के लिए कल्याणकर दिशा में अग्रसर होने की प्रबल प्रेरणा देने के कारण भी प्रस्तुत अध्ययन की स्वाध्याय मंगलमय है। 00 अध्ययन-१३ २१५
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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