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________________ श्र m EXEXOX 1 अध्ययन परिचय पैंतीस गाथाओं से यह अध्ययन निर्मित हुआ है। इस अध्ययन का केन्द्रीय विषय है-काम भोगों में आसक्ति व अनासक्ति। दोनों को कारणों और परिणामों सहित यहां चित्र और सम्भूत नामक दो सहोदर भ्राताओं के माध्यम से चित्रित किया गया है। दोनों से सम्बन्धित चित्रण एवं वर्णन होने के कारण इस अध्ययन का नाम 'चित्र-सम्भूतीय' रखा गया। चित्र यहां अनासक्ति एवं निर्मल संयम के प्रतीक हैं और सम्भूत आसक्ति एवं सांसारिकता के। दोनों के चरित्र जैन कर्म सिद्धान्त' को उजागर करने वाले चरित्र हैं। पूर्व-भव में सहोदर गोपाल-पुत्रों के रूप में मुनि चन्द्र से सम्बोधि प्राप्त कर दोनों ने मुनि-दीक्षा ग्रहण की थी। संयम पाला था। मुनि-वेश की मलिनता व स्नानाभाव से दोनों के मन में आद्योपान्त जुगुप्सा भाव बना रहा। संयम के फलरूवरूप दोनों सौधर्म देवलोक में देव बने। जुगुप्सा-भाव के फलस्वरूप देवायुष्य पूर्णकर शांडिल्य विप्र की दासी यशोमती के यहां जन्मे। सर्प-दंश से दोनों की मृत्यु हुई। दोनों मृग बने। शिकारी के हाथों मृत्यु को प्राप्त होकर दोनों ने राजहंसों के रूप में जन्म लिया। वहां एक मछुआरे ने उनका वध किया। तत्पश्चात् वे वाराणसी के अतिसमृद्ध चाण्डालाधिपति भूतदत्त के घर चित्र व सम्भूत रूप में जन्मे। इसी भव में दोनों ने अपना-अपना भविष्य अपने अपने कर्मों से रचा। इस दृष्टि से भी प्रस्तुत अध्ययन का नामकरण सार्थक है। प्रतिभा पर किसी जाति का एकाधिकार नहीं होता। चाण्डाल कुल में उत्पन्न होकर भी दोनों भाइयों का अद्वितीय प्रतिभाशाली होना इसका सूचक है। इस प्रतिभा का प्रभाव चतुर्दिक् व्याप्त हुआ परन्तु निम्न जाति के होने के कारण उन्होंने राजकीय दण्ड सहा। निराश हो आत्महत्या करने गये तो एक मुनि ने उन्हें ज्ञान दिया। दोनों ने मुनि-दीक्षा ली। प्रमाणित भी हो गया कि जिनेन्द्र भगवान् के शासन में सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। दोनों ने शुद्ध संयम पाला परन्तु सम्भूत मुनि ने सनत्कुमार चक्रवर्ती की रानी श्री देवी को देख निदान किया। अपनी तप-साधना का फल चक्रवर्ती जैसे काम-भोगों को भोगने के अवसर के रूप में चाहा। चित्र मुनि के समझाने पर भी यह कामना बनी रही। इसने संभूत मुनि के संयम को निर्मल नहीं रहने दिया। इसी ने दोनों के वियोग का बीज बोया। इसकी आलोचना भी संभूत मुनि २१४ उत्तराध्ययन सूत्र ভ
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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